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________________ यो मूंडा ब्यौहार करण लाग रहे सैं, अर तू बोलबाला लखावै सै? कै साल तै मैं तन्नें पूज्जण लाग या सूं । फेर भी तू मेरी घर आली का पांडा इन दुसटां तै नहीं छुटवा सकदा । तेरे देवता होण का, अर कई बरस तै तन्नै पूज्जण का, मन्नें के फैदा होया? जै तेरे भित्तर सक्ती सै तै तू मन्. सकती दे जिस” मैं आपणी घर आली नैं बच्या सकूँ, अर इन दुष्टां नै इनकी करणी का सुआद चखा यूं ।” न्यू कहते-ए ओ देवता माली के सरीर मैं बड़ गया। बड़तें-ए उसके सरीर मैं बेतदाद ताकत आ गी । अंगड़ाई लेंदे-ए जेवड़ी टूट गी। माली छूट गया । गुस्से मैं भर के उसनैं ,दे मोद्गर अर दे मोद्गर, वे छैऊं दुसट अर आपणी घर आली मार गरे । गुस्सा इतणा ठाड्डा था अक माली हमेस्सां खात्तर बैहक ग्या । उसके सामी जो कोए आत्ता उस्सै नैं ओ मार देंदा । ईब यो उसका रोज का-ए काम होग्या । उसनैं कसम खा ली-आए दन मैं छह मरदां नैं अर एक लुगाई नैं जरूर मारूंगा। सारी नगर मैं रोहा-राट माच ग्या । राज्जा नैं चिन्ता होई । राज्जा सरेणिक नैं आपणे करमचारियां ते या सिमस्या हल करण की कही,पर कोए भी कामयाब कोन्यां होया । फेर यो फैसला होया-नगर के कुआड़ दन-रात बंद राक्खो, जिस” अरजन माली नैं नगरी मैं बड़ण का ए मोक्का ना मिल्लै । राज्जा के हुकम तें नगर के कुआड़ मार दिए । अर न्यू करदे- करदे छह महीने बीत गे । करम कर के, एक दन भगवान महावीर ओडै पधार गे। नगर के बाहर वे बाग मैं ठैर गे। ओ बाग राज्जा का था । नगरी के लोग्गां नैं बेरा पाट्या तो सबनें बंदना करण की सोच्ची पर अरजन माली के भै तै किस्से की भी नगरी के बाहर जाण की हिम्मत कोन्यां पड़ी। सबनें घरां हरियाणवी जैन कथायें/24
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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