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________________ में-ए सेट नंदन मणिहार था । या बौड़ी मन्नें बणवाई थी। मन्नं आपणे लिए होए बरत तोड़ दिए थे। बौड़ी मैं मेरा मोह मरण ताईं भी कम नहीं - होया था । उस मोह का फल मन्नै मिल्या । मरें पाच्छै मन्नें आडै बौड़ी में मींडक बण के पैदा होणा पड्या । _मींडक के रूप में पैदा होण आले नंदन मनियार नै आपणा पाछला जनम आपणी आंख्यां के सामी हाथ की लकीरां की तरियां कत्ती साफ दीक्खण लाग्या ।” "मींडक बणे नंदन मनियार का फेर के होया भंते (भगवान)! मैं न्यूं ओर जाणना चाहूं सूं ।” भगवान नै आग्गै बताई “मींडक बौड़ी मैं-ए रहता रया । एक बर कई साल पाछै ,राजगीर मैं दुबारै मेरा आणा होया । समोसरण रच्या गया। सरेणिक फेर दरसन करण आवै था। ओ बौड़ी पै ठहर्या । दुनिया बार-बार मेरी भगती तै बडाई करण लाग रही थी। मींडक नैं सुणी तै उसके जी मैं मेरे समोसरण मैं आ कै, दरसन करण की भावना बण गी। ओ मेरे दरसन करण नै चाल पड्या । पर करमां के लेख तै कुछ ओर-ए थे । आपणे छोटे से सरीर तै, फुदक-फुदक के चालती हाणां ओ एक घोड़े के पां तलै आ ग्या । ओ रगड्या गया । सरीर से खून चाल पड्या । ओ आपणे घायल सरीर नै ले के, राह मैं तै एक कान्नी हट लिया । सरीर मैं बेदना लाग रही थी। उस टैम उसके मन मैं तीर्थंकर के दरसन करण के भाव थे । जाएं तै उसका मन पाछले जनम मैं लिए होए परभू के दरसन/5
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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