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________________ - "तै सुणो गोत्तम! यो दुर्दुर देव इस्से सहर मैं रया करता । इसके तीसरे पूरब जनम का नां था- सेट नंदन मनियार । एक बर यो मेरे समोसरण मैं आया था । मेरी बाणी सुण के इसनै सरावग के बरत ले लिए थे। इस के जी मैं पूरी सरधा होगी थी। नेम-बरत पालती हाणां इसनैं दुनिया के भले के घणे-ए काम करे थे । उस टैम इसनैं नंदा नां की एक बौड़ी भी बणवाई थी। राज्जा सरेणिक तै इसने इस काम की इजाजत मांगी थी। सरेणिक नै बौड़ी बणान का काम आच्छा सिमझ के इजाजत दे दी थी। बौड़ी बण के त्यार हो गी ते राजगीर की जन्ता नैं फैदा होया । बौड़ी| का पाणी खसबू आला था। उसमें लोग न्हाते । आण-जाण आले मुसाफर अराम करते । दुनिया नंदन मनियार की बड़ाई करदी, अर उस ते धन्न-धन्न कहती। नंदन नै आपणी बड़ाई आच्छी लागती । बौड़ी बणवाएं पाछे इसनैं लोग्गां की भलाई खात्तर बाग, धरमसाला, होसधालय, दानसाला, अलंकार साला, अर चित्तरसाला बणवाईं। सारे लोग उनका फैदा ठाण लाग्गै । मनियार की घणी-ए बडाई होण लाग गी । ____ जिब तै नंदन नैं बरत लिये थे, उसनै साधुआं की बाणी सुणन का मोक्का नहीं मिल्या था । जाएं तै ओ आपणे बरतां नैं भूल ग्या अर दुनिया | की बडाई मैं-ए बिचल गया । समै कदे एक जीसा कोन्यां रहंदा । समै खराब आया। उसके सरीर मैं कई बेमारी लाग गी। उसनै घणे-ए इलाज कराए पर कोए फैदा ना होया। इलाज करण खात्तर दूर-दूर तै बैद भाज्जे आए। सब नैं आपणा-आपणा ग्यान अर तजरबा अजमाया, पर कोए-सा भी कामयाब कोन्यां होया ।" हरियाणवी जैन कथायें/2
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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