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________________ भूमिका - हरियाणवी जैन कथायें सुप्रसिद्ध एवम् स्वनामधन्य सर्जक गुरुदेव श्री सुभद्र मुनि जी महाराज द्वारा सृजित प्रस्तुत कृति का ऐतिहासिक महत्त्व है। केवल इस कारण नहीं कि यह वर्तमान समय की मांग है, अपितु इस कारण भी कि यह इतिहास के निरन्तर लिखे जा रहे ग्रंथ में मौलिकता एवम् नवीनता का ऐसा अध्याय जोड़ने वाली रचना है, जो एकाधिक दृष्टियों से अभूतपूर्व महत्त्व से सम्पन्न है। दूसरे शब्दों में, इतिहास के लिए अनिवार्य बन जाने वाली विरल रचनाओं में से एक है-'हरियाणवी जैन कथायें। आरम्भ से ही जैन साहित्य की विशेषता रही है कि वह सदैव आभिजात्य भाषा के स्थान पर जन-भाषा के ही रूप में अभिव्यक्त हुआ। भगवान् महावीर की देशना अपने समय की अभिजात अथवा कुलीन भाषा-संस्कृत में नहीं अपितु उस समय की जन-भाषा-प्राकृत में मिलती है। इसे केवल भाषा-विषयक चुनाव ही कहकर टाला नहीं जा सकता । वास्तव में यह उस दृष्टिकोण का परिणाम है, जिसे न तो कभी स्तरीय कहलाने का मोह रहा और न ही कभी पुरस्कार आदि पाकर प्रतिष्ठित होने का। उसका उद्देश्य यदि कोई रहा तो केवल अधिक से अधिक लोगों तक अपना मंगलकारी मंतव्य पहुंचा कर उन्हें अधिक से अधिक लाभान्वित करना । यह उद्देश्य जन-भाषा को माध्यम बना कर ही सिद्ध हो सकता था, जो हुआ भी । इतिहास साक्षी है कि जैन साहित्य का महत्त्वपूर्ण अधिकांश प्राकृत, शौरसेनी, राजस्थानी, गुजराती, कन्नड़ आदि जन-भाषाओं तथा बोलियों में रचा गया । हरियाणवी भाषा में जैन साहित्य का सृजन और प्रकाशन लगभग नहीं हुआ । जैन धर्म की हरियाणा में भी पर्याप्त उपस्थिति के बावजूद यदि जैन साहित्य का सृजन-प्रकाशन हरियाणवी में नहीं हुआ तो इसका एक कारण यह भी है कि यहां का शिक्षित वर्ग इस ओर से प्रायः उदासीन रहा। हरियाणवी में जैन कथाओं का यह पहला संकलन है और यह इसके ऐतिहासिक महत्त्व का एक आयाम है । इस आयाम की सहज विशेषता है- जैन सहित्य को रचनात्मक रूप प्रदान करते हुए उसके प्रचार-प्रसार में वृद्धि करना और उसे अक्षर (जिस का क्षरण न हो) बनाना । इसके ऐतिहासिक महत्त्व का दूसरा आयाम है- हरियाणवी साहित्य के लिए अभूतपूर्व योगदान करना । हरियाणवी में अब तक पद्य-गीतों (रागणियों) और स्वांगों (सांग) के रूप में ही थोड़ा बहुत साहित्य उपलब्ध रहा है। वह भी मौखिक रूप में अधिक और लिखित रूप में कम । परिणामतः हरियाणवी साहित्य की अनेक रचनायें मात्र स्मृति पर आधारित होने के कारण धुंधली पड़ते हुए लुप्त होती जा रही हैं । जो हैं वे या तो पद्य रूप में हैं और या फिर
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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