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________________ सै। मेरी बात मान ज्यागा तै मैं तन्नै कुछ ना कहूं । अर, नहीं मान्नैगा तै मैं तन्नै डस ल्यूंगा। मेरे जहरीले दांद तन्नै सांस लेणा भुला देंगे।" कामदेव नै ईब कै भी उसकी बात कान्नां ऊपर तै टाल दी। धरम पै उसकी पूरी सरधा थी । धरम मैं तै ताकत होया-ए करै सै । सांप नै उसकै कई बर डंक मारे पर उसका ना बिगड्या कुछ भी। ओ तै पहलां की तरियां अपणे धरम मैं-ए लाग्या रया । ओ मिथ्या देव सारे बिघन कर-कर के हार लिया। उसका घमंड कामदेव के सामीं चूर-चूर हो लिया। उसने सोची अक इन्दर महाराज साच्ची कहै था । यो तै घणा करड़ा लिकड्या। देव नैं सांप का रूप छोड्या अर अपणे असली रूप में आ गया । देवता के रूप में कामदेव तें बोल्या, “भाई! तू तै घणा-ए ऊँचा अर साचा भगत सै | या सारी माया तै मन्नै तेरा हिंतान लेण खातर बणाई थी। तेरै तकलीफ होई ते भाई मन्नै माफ करिये।" कामदेव यो देख के हैरान रह ग्या। कहण लाग्या, “देवता! तनैं तै मेरे तै साच्ची राही बता दी। तेरे हिंतानां मैं पास हो के नैं मेरे भाग जाग गे। तम तै मेरे तै बड्डे सो। मेरे तैं माफी मांग कै मन्नै सरमिंदा ना करो ।” उसकी मिट्टी बात सुण के देव घणा-ए राज्जी होया । अर बोल्या-मांग ले तन्नै जो किमे मांगणा हो । तेरे जी की ईब तै सारी बात पूरी करूंगा। कामदेव नै कह्या-मन्नै दुनिया की किमे-भी तिमन्ना कोन्या । मन्नै नहीं चाहिये दुनिया की कोये भी चीज । मैं तै भगवान् की भगती मैं लाग्या रहूँ, बस यू हे वरदान चाहूं सूं । साचा भगत कामदेव सरावग/103
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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