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________________ खात्ती नैं सोच्ची अक 'रोटियां का टैम हो रूहूया सै। पहल्यां रोट्टी खा ल्यूं, फेर पेड़ काट ल्यूंगा ।' न्यूं सोच कै ओ रोट्टी खाण बैठ गया । हिरण नैं खात्ती देख लीया । ओ मुनी बलराम नैं आपणी गेल्लां ओड़ै लीयाया । खात्ती नैं इज्जत करी अर मुनी तै भिक्सा लेण की परारथना करी । मुनी बलराम उस भिक्सा लेण लाग्गे । यो सारा सीन हिरण का बच्चा देक्खण लाग रहूया था। यो सीन उसके जी नैं घणा-ए प्यारा अर सुख देण आला लाग्या । ओ सोच्चण लाग्या - धन्न से मुनी नै, जो तिपस्या करें मैं अर धन्न से इस खात्ती नै जो ईसे तिपस्सी साधू नै भिक्सा देवै सै। जै मैं माणस होन्दा तै मैं भी ईसे तिपस्सी नै भिक्सा दे के आपणी जिनगी नै सुफल कर लेंदा। न्यू सोच-सोच के उसकै आंसू आ ग्ये । दान देण की सुभ भौना उसमें गंगा-जमुना सी बैण लाग गी । संजोग की बात! उस्सै टैम जोर की आंधी चाल्ली। जिस पेड़ नैं खात्ती काटणा चाहूवै था ओ टूट कै ढै पड्या । तीन्नूं उसके तलै दब गे अर तीनुओं का सरीर पूरा हो गया । मुनी बलराम नैं बहमलोक (सुरग) मैं जनम लीया। वे देव के रूप मैं पैद्दा होए । खात्ती अर हिरण का बच्चा आपणे आच्छे करमां के मुताबक उस्सै देवलोक मैं बलराम की सेवा करण आले देव बणे । मुनी नैं आपणी तिपस्या अर साधना तै यो ऊंच्चा पद हासल कर्या, खात्ती नैं दान दे कै अर हिरण के बच्चे नैं आपणी आच्छी अर सुभ भौना ते बढ़िया गत पाई । हरियाणवी जैन कथायें / 84
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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