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________________ न्यूं सुण के वा नेज्जू कान्नी लखाई तै हैरान रह गी। उस नैं जिब्बै-ए बालक की नाड़ मैं तै रस्सी खोल्ली । बलराम मुनी नै यो सारा सीन देख लिया। बलराम मुनी नैं सौच्ची अक मेरे कारण या लुगाई आपणे होंस भूल गी । मन्ने देख के तै लोग के बेरा के कर सकें सें । मैं नगरी में पां-ए ना धरूं तै ठीक रहेगा। न्यूं सोच के वे जंगल कान्नी उलटे चाल पड्ये | या बात होएं पाछै वे कद्दे नगरी में कोन्यां आए । जंगल मैं-ए रैहण लाग गे। किसे आंदे-जांदे मुसाफर तै रोट्टी मिल जांदी तै ले लेंदे, ना तै । बरती रह कै साधना मैं लाग्गे रहंदे । एक दन बलराम ध्यान में बैठे थे। ओड़े तै एक हिरण का बच्चा उछलता-कूदता होया लिकड्या । मुनी जी के भोले रूप नैं देख कै हिरण का बच्चा ओडै-ए टैर ग्या । मुनी जी के चरणां मैं बैठ गया । मुनी जी नैं प्यार तै ओ देख्या। उस दन तै ओ हिरण का बच्चा ओडै-ए रैहण लाग्या । उसने भी किमे ग्यान हो गया । हिरण का बच्चा घणा स्याणा बण ग्या था। उस जंगल मैं कोए राहगीर रोट्टी खांदा तें हिरण उसनैं देख कै भाज्या होया मुनी जी के धोरै पहौंचता अर उन नै उस मुसाफर धोरै ले आंदा । राहगीर भिक्सा मैं जो कुछ देंदा, मुनी जी ओ-ए ले लेते । एक दन की बात सै । एक राज्जा नैं आपणे खात्ती तै अरथ बणान की लाकड़ी मंगाई । ओ खात्ती उस जंगल में लाकड़ी टोहता होया एक पेड़ धोरै पहोंच्चा । जित बलराम मुनी साधना कऱ्या करते उस तै माड़ी-ए दूर ओ पेड़ था। हरियाणवी जैन कथायें/82
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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