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________________ सुभ भौना म्हाभारत के बाद का जिकर सै। किरसन जी इस लोक ते जा लिए थे। उनके जाण तै बलराम का दिल टूट लीया था । किरसन के बिना यो संसार उन नैं कती सून्ना लाग्या करदा । एक दन उन नैं घर-बार छोड-ए दिया। बलराम मुनी बण कै आतमा की साधना मैं लाग गे । एक बर बलराम मुनी भिक्सा लेण खात्तर चाल पड़े। एक नगरी मैं पहोंचे । उस नगरी के बाहर राह में एक कुआं पड्या । ओडै कुछ लुगाई खड़ी थी। कोए बात घडै थी। कोए कुएं तै पाणी काड्ढै थी। आस्ता-आस्ता कुएं पै भीड़ होण लाग्गी । जिब्बै-ए एक लुगाई ओडै पाणी भरण आई। उसकी गेल्यां एक बालक भी था। उसकी निग्हा बलराम मुनी पै पड़ी तै दूसरी लुगाइयां की तरियां वा भी मुनी नै देक्खण लाग्गी । उसनै इस तरियां के भेस आले साधू कदे ना देखे थे। उसनैं कुछ ध्यान ना रया । वा काम भी करदी रही अर मुनी नै देखदी भी रही । उसनैं नेज्जू (जौड़ी) बालटी कै बांधण की बजाय बालक की घिट्टी मैं बांध दी अर कुएं मैं गेरण नै त्यार हो गी। किसे साथ आली नै देख्या तै टोक्की, “तू के करण लाग ही सै?" “कूएं तै पाणी काढूं तूं ।” “अर तन्नै नेज्जू का फन्दा क्या मैं लाया सै, न्यूं ते देख ले ।” हरियाणवी जैन कथायें/80
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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