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________________ -आस्था की ओर बढ़ते कदम प्रभु महावीर ने नाव में यात्रा करने की आज्ञा प्रदान की। उन्होंने अनेकों बार वैशाली से राजगृही तक आते हुए नाव द्वारा गंगा पार की थी। इस के बारे में आगमों में प्रमाण उपलब्ध हैं। भगवान महावीर के निर्वाण के बाद सभी मौर्य सम्राटों ने जैन धर्म के विदेशों में फैलाने का प्रयत्न किया। इन समारोहों में सम्प्रदायिकता का उल्लेख जैन इतिहास में सन्मान से लिया जाता है। इस के बाद उज्जैन में कालकाचार्य को अपनी बहिन साध्वी सरस्वती की रक्षा के लिए ईरान जाना पड़ा। इस तरह ईरान देश के राजाओं में जैन धर्म फैला। यह घटना ईसा पूर्व २ सदी की है। उस समय उज्जैन में गर्दभिल्ल का राज्य था। आचार्य ने इस राजा को हटा कर पहले शकों को गद्दी पर बैठाया गया। फिर शक जव प्रजा का शोषण करने लगे, तो उन्होंने अपने भानजे चन्द्रगुप्त को उज्जैन का शासन दिया। कालकाचार्य बहुत प्रभावक आचार्य थे। उन्होंने स्वयं स्वर्ण भूमि (वर्मा), जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया तक जैन धर्म का झंडा बुलंद किया। फिर जैन धर्म से संरक्षण मिलना बंद हो गया। मध्य काल से मुस्लिम काल तक जैन धर्म सिमट कर भारत तक सीमित रह गया। इस काल में जैन धर्म का दूसरे धमों व राजाओं ने काफी नुकसान पहुंचाया। जैन धर्म का साहित्य विदेशों में १५वीं सदी में पहुंचा। १६वीं सदी में अमेरिका में विश्व धर्म संस्था शिकागो में आयोजित हुआ, जिस में श्वेताम्बर आचार्य श्री आत्मा नंद जी महाराज ने वंवई के एक वैरिस्टर श्री वीर चंद राघव जी गांधी को जैन धर्म का प्रतिनिधि बना कर भेजा। आचार्य श्री आत्मानंद जी महाराज प्राचीन मुनि परम्परा का पालन करते हुए स्वयं न गए। यह वही कान्फ्रेंस थी, जिस में विवेकानंद जी ने हिन्दु धर्म का प्रतिनिधित्व 81
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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