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________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम एक तरफ अंबड सन्यासी का चिंतन गहरे में हुआ था। वह सम्यकत्व का स्वरूप तो जानता था। पर सुलसा का सम्यकत्व कितना दोष रहित है। उसे जानने के लिए उस ने यह रूप धारण किया था। अंबड सन्यासी अपने प्रत्यक्ष रूप में आया उसने सुलसा को प्रणाम किया और कहा कि तीर्थकर प्रभु महावीर ने आप को धर्म लाभ भेजा ____ मैं तो आप के सम्यकत्व् की परिक्षा कर रहा था। मुझे इस कृत्य के लिए क्षमा करें। सुलसा ने अंदड को सहधर्मी सा सन्मान दिया। क्योंकि उस के शास्ता का संदेश इसे प्राप्त हुआ था। इस आशीवाद के पीछे गहन रहस्य टिपा था। यह रहस्य था सुलसा की धर्म आराधना। इसी आराधना के कारण सुलसा ने तीथंकर गोत्र का उपार्जन किया। तीर्थकर पद की प्राप्ति के लिए पूर्व जन्म में कटोर साधना करनी पड़ती है। अरिहंत बनने के लिए अरिहंत की उपासना करनी पड़ती है। सिद्ध बनने के लिए सिद्धों की उपासना करनी जरूरी है। जीवन में सारभूत है तत्व सम्यक्त्व, विकास का मार्ग है सम्यकत्च। विनाश का मार्ग है मिथ्यात्व। हमें हर समय मिथ्यात्व के तप से सावधान रहना है।
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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