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________________ -आया की ओर कदम प्रकरण. - १७ तेरापंथी स्थलों की यात्रा मेरी डूंगरगढ़ यात्रा : मैने पहले भी लिखा है कि मेरे जीवन में तीन मुनियों का उपकार है। वह थे स्व० श्री रावत मुनि जी, रव० श्री वर्धमान मुनि जी व श्री जय चन्द जी महाराज। श्री वर्धमान जी, जव अंतिम बार पंजाव पधारे तो वह श्री कमल मुनि जी के साथ थे। उनके दर्शन मैंने मालेरकोटला, पटियाला, नाभा, समाना में किए थे। उस के बाद वह आचार्य श्री तुलसी जी के चरणों में हाजिर हुए। आचार्य भगवान ने उनका चर्तुमास डूंगरपुर में करने का आदेश दिया। मुनि वर्धमान का जन्म गुजरात के वाव शहर में हुआ था। जव आचार्य श्री तुलसी गुजरात में पधारे तव युवा वर्धमान के मन में संयम लेने का विचार उटा। घर वाले उन्हें छोड़ने को तैयार न थे। घर से सम्पन्न धार्मिक संस्कारों के वर्धमान देव, गुरु व धर्म के प्रति समर्पित थे। घर वालों ने उन्हें वन्धन में डालने के लिए उनकी सगाई कर दी। पर यह सगाई का वन्धन भी उन्हें संसार में वांध न पाया। आप ने आचार्य श्री तुलसी जी से दीक्षा ग्रहण की। १६६७ में मेरी व मेरे परिवार को इनके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह दिन मेरे जीवन का इतिहासक दिन था। जव मुझे अणुव्रत दीक्षा प्रदान की गई तव से वर्धमान मुनि हमारे लिए मुनि ही नहीं थे, वह हमारे परिवार के सलाहकार बन गए, मुझे कदम कदम पर उन्होंने प्रेरणा दी। पर विधि को कुछ और ही मंजूर था। मुनि श्री 492
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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