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________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम उपर घूम रहे थे। वैसे भी हमें गुजराती भोजन के स्थान पर पंजावी भोजन धर्मशाला में प्राप्त हो गया । यह मारवाडी भोजन था, जो पंजावी भोजन से ज्यादा अंतर नहीं । अठाई घंटे की थकान वाला यात्रा के वाद मन्दिरों का क्रम शुरू हुआ । मैंने श्रद्धा-भक्ति के साथ आदिश्वर दादा के चरणों में पूजा की। पूजा के वस्त्र व द्रव्य व भाव पूजा की । यथा शक्ति सभी मन्दिरों के दर्शन किए। यह मन्दिरों का नगर, देव विमानों का समूह है। ऐसा अलौकिक तीर्थ संसार के मानचित्र पर देखने को उपलब्ध नहीं होता। ऐसे तीर्थ की यात्रा करना जिन भक्ति का प्रतीक है । हमारा जीवन धन्य हो गया। मैं अपना जीवन सफल मानता हूं कि मुझे भगवान ऋषभदेव की अलौकिक चमत्कारी प्रतिमा के दर्शन का सौभाग्य मिला। मैंने प्रभु से विश्व शांति व अपने धर्मभ्राता रविन्द्र जैन के लिए आर्शीवाद मांगा। यहां सत्य, अहिंसा व अनेकांत के कण कण में दर्शन होते हैं । इस तीर्थ पर आकर प्रभु आदिश्वर से यही मांगा जाता है कि वार वार अपने दर्शन देना। अपने चरणों में बुलाना । ? . सिद्धांचल की पवित्र यात्रा करके मैंने जीवन का वह कर्तव्य पूरा किया जो हर जैन के लिए आवश्यक है ! संसार में पालीताना सचमुच अनूटा स्थल है जहां श्रृद्धा, कला व भक्ति का समुद्र टाठें मारता है । इन्हीं यात्रा को पूर्ण कर मैं वापस अहमदावाद आया। यहां पूज्य गुरूदेव श्री जय चन्द महाराज के पुनः दर्शन किए। मैं अपने वीच उन्हें पाकर आत्म विभोर हो रहा था। फिर मैंने गुरुदेव से वापसी की आज्ञा मांगी। उन्होंने मंगल पाठ सुना कर आर्शीवाद दिया । अहमदावाद से हम ने विचार किया कि क्यों न कला के केन्द्र माउंट आवू की यात्रा की जाए। इसी संदर्भ में मैंने सपरिवार इस तीर्थ व पर्यटन स्थल की यात्रा की । 472
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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