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________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम के वीज जैन धर्म परम्परा के गुरू ने प्रदान किये। उस जमाने में अणुव्रत अंदोलन चरम सीमा पर था। जन साधरण बिना टीका टिप्पणी से उस से जुड़ जाते थे। तेरापंथ सम्प्रदाय पंजाव में इसी शताब्दी में आया। पंजाब व हरियाणा के अग्रवालों ने संत व साध्वियों में धर्म प्रचार शुरू किया। इन संतों के व्याख्यान खुले होते थे। इन खुले व्याख्यानों का स्थान, समय निश्चित था। स्वयं १६४६ में आचार्य तुलसी प्रथम बार पंजाब पधारे। साधु साध्वी त्यागी थे। उनकी बात लोगों को सरलता से जंचने लगी। वह अणुव्रत का संदेश लेकर पंजाब पधारे थे। उनके उपदेशों को सभी वणों, जातियों, धर्मों के लिए सांझे थे। वह तीन तीन समय व्याख्यान करते। पंजाब की व्यापारिक मंडीयों में उनका व्यापक असर था। वह जन उपयोगी उपदेश देते थे। हजारों साधु साध्वी, उनका अणुव्रत का संदेश भारत के कोने कोने में धर्म प्रचार कर रहे थे। इन साधुओं में से तीन साधुओं का ग्रुप हमारे धूरी में भी ठहरा। उनके नाम थे श्री रावत मल्ल, श्री __ वर्धमान जी व श्री जय चन्द। तीनों ने मेरे परिवार व मुझे प्रभावित किया। मुझे इन्हें सुनने का सब से ज्यादा अवसर मिला। इनका चर्तुमास था हम चर्तुमास तीन समय जाते थे। इनका व्याख्यान सुनते। मेरे माता पिता इनके उपदेश अनुसार धर्म अराधना करते। हमने इन्हीं से गुरू धारणा ली और सम्यक्त्व के पाठ को सीखा। तीनों में सबसे बड़े थे मुनि रावत मल्ल जी और सबसे छोटे थे मुनि वर्धमान जी। तीनों नुनिराज महान तपस्वी, तत्ववेता, देव, गुरू व धर्म के प्रति समर्पण बढाने वाले थे। वह आचार्य तुलसी के अणुव्रत के माध्यम से जैन धर्म का प्रचार करते थे। अव श्री रावत मुनि जी व श्री वर्धमान मुनि जी का देव 41
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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