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________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम करने गए । १० पूर्वो का ज्ञान अर्थ सहित दिया गया । एक दिन रथूलिभद्र की सात वहनें अपने भाई के दर्शन करने आई। साध्वी वनी वहिनों ने आचार्य भद्रबाहु से कहा “गुरुदेव ! हमारा भाई कहां है ?" आचार्य भद्रवाहु स्वामी ने कहा " गुफा में तुम्हारा भाई ध्यानारथ है । " वहिनें गुफा की ओर गईं। तो क्या देखती हैं कि एक शेर बैठा है। सभी साध्वी भय के कारण वापिस लौट आईं। सारी बात आचार्य भद्रवाहु को बताई । आचार्य भद्रबाहु ने साध्वीयों से कहा "तुम अब जाओ, तुम्हारा भाई वहीं मिलेगा। वह विद्यावल से शेर वन गया है।" बहिनें दूसरी बार गई तो उन्होंने अपने भाई स्थूलिभद्र को पाया। उस दिन भद्रवाहु ने स्थूलभद्र को पूदों का मूल अभ्यास कराया। उन पूर्वो का अर्थ नहीं बताया। आचार्य र लिभद्र ने बहुत प्रार्थन की । पर भद्रवाहु स्वामी ने सोचा कि भविष्य में इस पूर्व विद्या कोई दुर उपयोग कर सकता है। इस लिए मुझे यह ज्ञान भविष्य में किसी को नहीं देना ।" आचार्य रथूलिभद्र ने पाटलीपुत्र में सभी अंग उपांगों के जानकारी से वाचना की। इस समय १२वीं अंग दृष्टिवाद समाप्त हो चुका था । यह दृष्टिवाद अंग किसी को याद नहीं था । आगमों की दूसरी वाचना मधुरा में आर्य रकदिल की प्रधानगी में सम्पन्न हुई। तब तक साधू आगमों की अधिकांश भाग भूल चुके थे। इस लिए दूसरी वाचना में आगम लिखे गए। इस में पाठ भेद सामने आए। इसे माधुरी कहा जाता है। उस समय मथुरा जैन कला, संस्कृति का केन्द्र था । आगमों की दो वाचनाएं इसी वल्लभी में सम्पन्न 460
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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