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________________ -आरश्य की ओर बढ़ते कदम की और आकर्पित होता है। छत पर एक पंच शरीरधारी वीर पुरूप की विशाल प्रतिमा अंकित की गई है जिसका सिर एक - शरीर पांच हैं। यह प्रतिमा महाभारत का कीचक है। यह दृष्य अत्यंत मनोहर और कौतुहल भरा है। इसी छत पर रामायण और महाभारत की अनेकों घटनाओं का वर्णन है। प्रवेश द्वार पार करते ही अगल-बगल दो प्रकोष्ट बने हुए हैं। जिस में जैन तीर्थंकरों की प्राचीन प्रतिमाएं हैं। एक प्रकोप्ट में खडी व वैटी प्रतिमाएं हैं। कुछ प्रतिमाएं तो विदेशी अक्रांता का शिकार हो चुकी हैं। पर भगवान ऋषभदेव के प्रताप से मन्दिर मूल रूप सुरक्षित हैं। कुछ ही सीढ़ीयां चढ़ने पर प्रथम प्रांगण आता है। यह मन्दिर को सूक्ष्म तोरणों को देखा जा सकता है। मगर यहां खड़े हो कर शिल्प की विशालता को निहारा जा सकता है। मन्दिर में जिधर भी नजर डालें उधर खम्भे ही खम्भे दिखाई देते हैं। इनकी संख्या १४४४ है। विशेषता यह है कि हर रतम्भ पर कला का नया रूप है। हर स्तम्भ अपने आप में शिल्प का स्वतन्त्र आयाम है। संसार में यह एक मात्र इमारत है जहां संगमर की स्तम्भावली दिखाई देती है। जब हम प्रांगण में खड़े हो कर अपनी दृष्टि छत की ओर निहारते हैं तो कला का विशाल जीवंत रूप पाते हैं। इस छत पर बनी हुई है एक कल्पवल्ली यानि कल्पतरू का एक लता दिखाई देती है। यह मन्दिर भारतीय स्थापत्य कला के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस स्थान का नाम मेघनाद मंडप कहा जाता है। चार कदम आगे बढ़ते ही भक्त स्वयं को छज्जे नुमा गुम्बज के नीचे पाता है। गुम्बजों में लटकते झूमर ऐसे लगते हैं मानों कानों में रत्न जडित कुण्डल लडक रहे हों। यही दोनों और दो ऐसे स्तम्भ हैं जिनमें मन्दिर निर्माता 441
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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