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________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम तीर्थ पर पंजावियों का अच्छा जमाव था । हमें यहां स्वर्गीय श्री सत्य पाल जैन जीरे वाले मिले, उन्हानें हमारे ठहरने की सुन्दर व्यवस्था कर दी । तपस्वियों के लिये अलग प्रवन्ध किया जा रहा था । आम लोगों के लिये अलग प्रवन्ध किया जा रहा था । यहां कई तपस्वी हमारी पहचान के थे । हमारे लिये इस तीर्थ पर आना परम सौभाग्य का अवसर था । हमें इस तीर्थ पर जनसाधारण की आस्था का प्रमाण मिला । मैंने अपने कमरे में अपना सामान टिकाया । हमें कमरा दिगम्बर धर्मशाला में मिला। मेले के अवसर पर दोनों समाज इकट्ठे हो जाते है । सभी धर्मशालाओं का कंट्रोल मेले के कारण श्वेताम्बर समाज के हाथ में था यह जैन एकता का अच्छा प्रमाण है । हमने रात्रि को सभी मन्दिर देखे । उस समय जम्बूद्वीप का निर्माण हो रहा था I गुजराती धर्मशाला भी सड़क पर तैयार हो रही थी । यहां धार्मिक वातावरण था । वहां पहुंचकर संसार से कट चुके थे । यहां आकर हमारे सामने तीर्थंकरों का इतिहास आंखें के सामने घूम गया । यह धरती पर तीर्थंकर प्रभु के समोसरण आये । हमारे लिये यहां का कण-कण पूज्नीय व वन्दनीय है 1 हमारी यह प्रथम यात्रा थी । रात्रि में पारणा स्थल व सामने के स्तूप नजर आये । रास्ते में माता ज्ञानवती जी के दर्शन किये । शाम को यहां की भोजनशाला में भोजन किया । यहां हर धर्मशाला में भोजन की सुन्दर व्यवस्था है दिगम्वर धर्मशालाओं में भोजन का प्रवन्ध बताने पर ही किया जाता है । हस्तिनापुर की प्राकृतिक छटा में हम सो रहे थे । विभिन्न मंदिरों में दानियों की वोलीयां चल रही थीं । यह बोलीयां पूजा के लिये होती हैं । सबसे बड़ी वोली श्रेयांस कुमार बनने की होती है । यह वोली लाखों रुपये तक 408
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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