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________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम विराजमान थी । वहां प्रभु चन्द्रप्रभु की पूजा अर्चना की, मन को अभूतपूर्व शांति मिली । मन प्रसन्नता से झूम उठा । यहां हमने वह स्थान भी देखा जहां मस्तक झुकाने से हर प्रकार की शारीरिक व्याधि दूर हो जाती है । मन्दिर का परिसर विशाल है । प्रबंधकों ने हमें खाने का आमन्त्रण दिया । हमें उनके अनुग्रह के आगे-शीश झुकाना पड़ा । हम खाना खाकर सन्तुष्ट हुए । फिर मन्दिर के आसपास निहारा । यहां मन्दिर के आसपास पहाड़ियां हैं । मन्दिर एक टीले पर स्थित है । यहां एक छोटा सा वाजार है । यहां दैनिक उपयोग की हर वस्तु आराम से मिल जाती है । यहां धर्म प्रचार सामग्री, भजनों के ऑडियो कैसेट, वीडियो कैसेट, पुस्तकें हर समय मिलती हैं । यहां मन्दिर में धर्मप्रचारक आते जाते रहते हैं, यह मन्दिर चाहे नया है, पर यहां की प्रतिमाएं बहुत प्राचीन हैं । प्रतिमा इतनी आर्कषक है कि जब कोई चन्द्रप्रभु भगवान का वर्णन करता है, इसी प्रतिमा का उल्लेख होता है । यह प्रतिमा १००० वर्ष प्राचीन लगती है । इस प्रतिमा पर कोई शिलालेख नहीं, फिर भी यह स्थान ऐसा है, जहां पहुंचते चन्द्रपुरी के प्रभु चन्द्रप्रभु की याद आ जाती है । इस तीर्थ के वारे में यह वात प्रसिद्ध है : "नगर तिजारा, देहरा, अलवर राजस्थान, जहां भूमि से प्रगटे, चन्दाप्रभु भगवान । पिछले सालों में यहां यात्रियों का आगमन काफी बढ़ा है । इन गांवों में खेती की जमीन कम ही पर्याप्त है । पर यह तीर्थ श्री महावीर जी जैसी विशाल संस्थाओं से सुसज्जित नहीं । कुछ भी हो इस तीर्थ पर आकर मेरी आस्था को नया आयाम मिला । यह तीर्थ व प्रतिमा दिगम्बर जैन परम्परा से जुड़ी है । इसी कारण अधिकांश लोग दिगम्बर ही यहां आते 397
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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