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________________ - - आस्था की ओर बढ़ते कदम है । गांव में कुछ खेती होती है, गांव के ज्यादा लोग फौज में है । मन्दिर के ज्यादा मुलाजम भी इसी गांव के हैं । यहां स्थानीय ग्रामीणों में प्रभु महावीर व जैन धर्म के प्रति अथाह श्रद्धा है । _फिर हम मुख्य मन्दिर के बाहर शांतिधाम में पहुंचे । इसके लिये हमें नदी पार करनी पड़ी । यहां चौवीस भगवान की भव्य प्रतिमाओं को प्रणाम किया । वापस फिर गांव में आये । मंदिर के पास एक अन्य मन्दिर के दर्शन किये । वापसी पर हम वस द्वारा महुआ पहुंचे । यहां से भरतपुर, मथुरा होते हुए वापिस दिल्ली पहुंचे । यह ऐसे क्षेत्र का सफर __ था जो मेरे धर्म की आस्था को दृढ़ करने में सहायक वना । इस यात्रा में मेरे धर्मभ्राता रवीन्द्र जैन की मेरे स्वास्थ्य के लिये मानी मन्नत पूरी हुई । इससे मुझे अनुभव हुआ कि मेरा शिष्य मेरी सेहत का कितना फिक्र करता है । यह फिक्र उसका शुरु से है । आज भी प्रणाम के बाद मेरे स्वस्थ्य का समाचार ज्ञात करना अपना धनं समझता है । उस का प्रणाम समर्पण की जीती-जागती मिसाल है । वह मेरी हर आज्ञा को पूर्ण रूप से अपनी शक्ति अनुसार पूरा करता है । कई वार मैं सोचता हूं कि वह व्यक्ति किस मिट्टी का वना है, जिसे अपने भूत, वर्तमान तथा भविष्य की कोई चिन्ता नहीं । प्रभु महावीर की भाषा में कहें, 'विनय मूल धम्भ' "विनय धर्म का मूल है ।" विनय और श्रद्धा उसके आसपास चक्कर लगाती है, उसके जीवन में हर पल घटित होती है, सचमुच गुरु की मेहनत, शिष्य के चरित्र से झलकती है । सो अपने इन्हीं गुणों के कारण सरलता व सहज भाव स्वयं प्रकट हो जाता है । 393
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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