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________________ -आस्था की ओर बढ़ते कदम प्राचीन शिलालेख लगाये गये थे । जो इसी मन्दिर में जीर्णोद्वार की सूचना देते थे । अव यहां जैसलमेर के पीले पत्थर की तीर्थकरों की प्रतिमा परिक्रमा लग रही धी । यह सारा देखने के पश्चात हम जलमंदिर की ओर बढ़े । लाल कमल खिले हुए थे । धरती पर देवविमान जैसा यह मन्दिर था । फिर सामने महताव बीवी का मन्दिर देखा । इसके सार्थ प्राचीन मन्दिरों का समूह था, फिर हम तांगे द्वारा नया समोसरण मन्दिर देखने गये, उस कुंऐ. को देखा, जिसका वर्णन मैं पहले कर चुका हूं । प्राचीन स्तूप देखा जो इस स्थान की प्राचीनता का प्रतीक है । रही समोसर की वात, यह तो अंगूठी का नगीना है । समोसरण से समझाना हो तो इस मंदिर को जरूर देखना चाहिये, इस मंदिर के साध धर्मशाला भी है । । यहीं दिगम्बर मन्दिर देखा, जहां प्राचीन प्रतिनाओं का अच्छा संग्रह है । यहां आचार्य रयण सागर के दर्शन किये, उन्हें पंजावी साहित्य भेंट किया, उन्होंने अपना साहित्य भेंट किया । यह भेंट बहुत अच्छी रही । एक दिगम्बर संत ने हमारे जैन साहित्य की दिल खोलकर प्रशंसा की !. पावापुरी के नजारे देखते दोपहर हो चुकी थी, चारों तरफ वातावरण था। दिगम्बर जैन मुनि के संघ दर्शन किए। उनका मधुर स्वभाव मन को मोहने वाला था। उन्होंने हमें यहां मन्दिर में विराजित जैन मूर्तियों के वारे में महत्व जानकारी दी। यह मुनि महाराज अच्छे लेखक थे। उन्होंने अपने हस्ताक्षर युक्त अपना एक सुन्दर ग्रंथ प्रदान किया। यह ग्रन्थ पावापुरी की अनुपम भेंट थी। यहां की धर्मशाला में हमने मन्दिर के चित्र प्राप्त किए जो भारत सरकार के पर्यटन विभाग से प्रकाशित हुए थे। यह चित्र जलमन्दिर व नए समोसरण मन्दिर के थे। हमने धर्मशाला से दोपहर को _342
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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