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________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम देश-विदेश के श्रद्धालु आते हैं, सेवा साधना करते हैं, कवि जी का प्रवचन सुनते हैं । ज्यादा राजगिरि ठहरने वाले यात्रियों के लिये वीरायतन ठहरना सरल है । यात्रा सुगम हो जाती है । समारोह के लिये योग्य भीड़ जुट रही थी । हमें पता नहीं था कि यह समारोह क्यों हो रहा है । कविजी महाराज के आश्रम में यह सम्मेलन हो रहा था । श्री फिरोदीया जी की प्रधानगी में यह समारोह शुरु हुआ । श्री फिरोदीया वीरायतन के प्रधान थे । वह लूना ग्रुप स्कूटर के मालिक थे । सभी पारिवारिक बंधनों को त्याग कविश्री की सेवा में रह रहे थे । उनके कारण वीरायतन ने अच्छी तरक्की की है । इस समारोह का प्रारम्भ कविश्री के मंगलाचरण से हुआ । फिर एक कवि ने उपाध्याय श्री अमरमुनि जी महाराज की सेवा में एक कविता प्रस्तुत की । फिर मेरे धर्मभ्राता रवीन्द्र जैन ने उपाध्याय श्री अमरमुनि जी म० की सेवा में एक अभिनन्दन पत्र प्रस्तुत किया । उन्हें “जैन धर्म दिवाकर" पद से हमारी संस्था ने अलंकृत किया । अभिनन्दन पत्र रात्रि को तैयार किया गया । २५वीं महावीर निर्वाण शताब्दी संयोजिका सनिति पंजाव की ओर से अभिनन्दन पत्र के साथ शाल अर्पण किया गया, साथ में पंजावी जैन साहित्य भेंट किया गया । इस अलंकरण के उत्तर में उपाध्याय श्री अमरमुनि जी म०. ने फुरमाया कि रवीन्द्र व पुरुषोतन दोनों का जीवन जैन धर्म को समर्पित आस्थापूर्ण जीवन है, यह दोनों एक दूसरे के प्रतीक हैं । एक-दूसरे के विचारों से समर्पित हैं । इन्होंने एक भिक्षु का सम्मान किया । इस सम्मान से मुझे संघ की सेवा करने का वल मिला है । मैं इन दोनों धर्मभ्राताओं द्वारा की जिन शासन के प्रति सेवाओं का अनुमोदन करता हूं । इन्होंने पंजावी भाषा में सबसे पहले शास्त्रों का अनुवाद 323 .
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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