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________________ - = વાસ્યા છી વોર વહd o૮મ कहते हैं कभी यहां शालिभद्र का भव्य महल था । दोनों इमारतों के बाहर पुरातत्व विभाग के सूचना पाटिका लगी है । जिसमें यह ज्ञात होता है । शाम अंधेरे का रूप ले रही थी । हम दिन का आनन्द लेना चाहते थे । इतनी लम्बी यात्रा की थकावट हो चुकी थी । हम आगे बढ़े । जहां मण्डीकुक्षी के चैत्य के पास वौद्ध विहार के खण्डहर थे । वौद्ध लोग इस स्थल पर विपुल यात्रा में घूम रहे थे । श्रीलंका में भिक्षु हमें पहले दिन मिल चुके थे । यह भिक्षु जापान के थे । यह अच्छी अंग्रेजी बोल लेते थे । वौद्ध भिक्षु गुजारे के लिये कुछ पैसा रख सकते हैं । पर त्याग-वैराग्य ज्ञान में वह सम्पन्न हैं । ___हमारी उनसे जैन व बौद्ध धर्म के सम्बन्धों के वारे में चर्चा हुई । यह वदकिस्मती है कि संसार में लोग जैन धर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानते । इसका कारण हमारी प्राचीन परम्पराएं हैं । आज इन परम्पराओं का पूर्व मूल्यांकन करने की जरूरत है । आज प्रचार की जरूरत है । अव हमारा समाज इस बात की आवश्यकता समझने लगा है । इसी कारण आचार्य श्री सुशील कुमार जी महाराज भारत से वाहर विदेश में घूमे और उन्होंने विदेशों में अनेकों मन्दिर व आश्रमों की स्थापना की । थकावट से हम चूर हो चुके थे । हम वीरायतन में वापस आए । वीरायतन की स्थापना भगवान महावीर का निर्वाण ई० २५०० महोत्सव पर भारतीय संरकृति के दार्शनिक श्रमण राष्ट्रसंत उपाध्याय श्री अमरमुनि जी म० की कल्पना अनुसार साध्वी आचार्य चन्दना जी दिशानिर्देश में हुई । हमें रास्ते में एक बौद्ध भिक्षुणी भी मिले | जो गर्मकुण्ड क्षेत्र में यात्रा कर रही थी, वह अंग्रेज थी । उसने हमें बताया कि उसका मट श्रीलंका में है । कुछ समय के वाद हम वीरायतन के द्वार पर थे । वीरायतन अपने 313
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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