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________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम अव हथौड़ा लेकर आया है, ऐसी मौत से तो मेरा मरना अच्छा है ।" राजा श्रेणिक के पास एक अंगुठी थी जिसके अंदर जहर भरा हुआ था, ज्यों ही श्रेणिक राजा के करीव पहुंचा तो श्रेणिक ने अंगूठी से हाथ पर जहर डाला और __ अपनी जीवन की इहलीला समाप्त कर ली ।" . . राजा की मृत्यु से कोणिक को बहुत गहरा आघात पहुंचा । अब उसका मन राजगृह नगरी से उच्चाट हो गया । वैशाली का वह पहले विनाश कर चुका था । उसने एक -- नगर चम्पा बसाने की योजना बनाई । पर उसके पुत्र राजा उदयन ने पाटलीपुत्र बसाया। जैन दृष्टि में राजगिरि ही सिद्धक्षेत्र तीर्थ है । इतिहास व संस्कृति का संगम है । राजगिरि को जैन व बौद्ध ग्रन्थों _में राजगृह के नाम से जाना जाता है । इसके वर्णन से सारे अगम भरे पड़े हैं । अनेकों तीर्थंकरों ने धर्म प्रचार के लिये इस शहर को चुना । इस शहर में प्रभु महावीर के १४ चतुर्मास हुए । यहां का राजा बिम्बसार श्रेणिक प्रभु महावीर का परम भक्त था । उसकी रानी चेलना वैशाली की राजकुमारी थी । दिगम्बर परम्परा के अनुसार प्रभु महावीर ने अपना प्रथम उपदेश यही दिया था । श्वेताम्बर परम्परा की अनेकों इतिहासिक घटनाओं का वर्णन से राजगृह जुड़ा हुआ है । हर जैन आगम इस सुवाक्य से प्रसन्न होता है । "तेणं कालेणं, तेणं समणे रायगिहा नाम नयर होथा ।" उस काल में राजगृह नाम का नगर था । इस नगर में धन्ना शालिभद्र सेठ पैदा हुए, जिनकी दीक्षा का वर्णन अनुपम है । शालिभद्र की माता इतनी सम्पन्न थी कि उसने नेपाल देश के व्यापारियों से समस्त कम्बल खरीद लिये थे । शलिभद्र उसकी इकलौती संतान थी । फिर ३२ पत्नियों के भेग में दिन रात डूबा रहता । फिर ऐसा प्रसंग आया उसके 304
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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