SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम उनके जीवन में 'विनय मूल धर्म' का सिद्धांत पूर्ण रूपेण घटित होता है। अब तो वह स्वयं ही गुरूणी पद पर आसीन हैं, पर वह हर समय अपने गुरुजनों की सेवा में अपनी गुरूणी सुधा जी की तरह तत्पर रहती हैं। हमने इन दोनों गुरूणी व शिष्या को जो भी सुझाव दिया, उन्होंने हमारी वात के अनुरूप इस का पालन किया। अपने स्वाध्याय का अमृत वह स्वयं वच्चों व अपने शिष्याओं को वांटती रही हैं। वह बच्चों को धार्मिक संस्कार के लिए हर तरह से तैयार करती हैं। बच्चों के धर्म शिक्षा के साथ साथ स्वयं भी कुछ न कुछ लिखने पढ़ने में तालीन रहती हैं। एक बार जो उनके चरणों में आता है वह उनसे कुछ न कुछ प्राप्त करता है। गुण ग्राहिता उनका प्रथम गुण है। पर निंदों से वह दूर रहती हैं। अपनी गुरूणी सुधा जी महाराज की तरह वह संसार में प्रशंसा की इच्छा नहीं रखती। दरअसल सायी स्वर्णकांता जी महाराज के समस्त परिवार में इतना सामूहिक प्रेम है कि ऐसा अन्यत्र देखने में नहीं आता। प्रथम दृष्टि में तो वह पता ही नहीं चलता कि कौन साध्वी दीक्षा में छोटी है कौन सी बडी। सभी का नहत्वपूर्ण स्थान है। सभी साध्वीयां ध्यान, तप, साधना व लेखन कार्य में तालीन रहती हैं। हर समय नए साहित्य को पढ़ना इन सभी साध्वीयों के जीवन का अंग है। सभी साध्वीयों का परिचय संसारिक लोगों से न के बरावर है। सभी साध्वीयां अपनी अपनी गुरूणी के प्रति समर्पित हैं। ऐसे पुण्यशाली साध्वी परिवार जैन संसार में कम दिखते हैं। इन सभी साध्वी मंडल को प्रत्येक साध्वी का हमारे पर उपकार धा, है और रहेगा। आज हम जो कुछ भी हैं। इन चारित्रात्माओं के आर्शीवाद के कारण हैं। 281
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy