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________________ स्था की ओर बढ़ते कदम लाखों रूकावटों, कष्टों व परिषहों को सहना पड़ा। आप ने सभी कष्टों को हंस कर सहन किया। १६४० में आप जी जगदीश मुनि जी के शिष्य वने। आप की दीक्षा के जब ५० वर्ष पूरे हुए, तो हमारे मन में उन्हें अभिनंदन ग्रंथ भेंट करने की भावना हुई। हमारी दृष्टि में उन्हें भेंट करने के लिए इस समर्पण ग्रंथ के इलावा कोई सुन्दर वस्तु नहीं थी। महाराज श्री इस प्रकार के वाह्य आडम्बरों का विरोध करते रहे हैं। आप का मानना है कि श्रावक का धन परोपकार में लगना चाहिए। झूठे आडम्बरों से लाभ समाज को कुछ प्राप्त नहीं होता। हम लोगों ने महाराज जी के भक्तों को एक मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग में अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित करने का निर्णय किया गया। भक्तों ने हमारे कार्य में तन मन से सहयोग करने का विश्वास दिलाया। यह सारे पंजाब में प्रथम अभिनंदन ग्रंथ था जो किसी जैन मुनि को अर्पित किया गया। फिर हम आचार्य श्री के पास पहुंचे। उन्हें प्रार्थना की श्री संघ के ५०वें दीक्षा दिवस पर आप का अभिनंदन करना चाहता है। इस अवसर पर आप का आचार्य पद महोत्सव भी मनाना है जो संघीय दृष्टि से जरूरी है। इसी चादर महोत्सव पर आप को अभिनंदन ग्रंथ भेंट करने का हमारा निर्णय है।" आचार्य श्री ने कहा "मैं तो एक जैन साधू हूं। मूझे इन बंधनों में क्यों उलझाते हो।" हमारे द्वारा वार वार आग्रह करने के बाद वह मान गए। फिर हमने जैन आचार्य श्री विमल अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशन समिति का निमाण किया। इस की संयोजिका साध्वी डा० जैन भारती (वर्तमान में साध्वी)। हम दोनों को प्रधान सम्पादक बनाया गया। सम्पादक मण्डल में श्रीमती मोहनी कौल, डा० डी.सी. जैन कुरुक्षेत्र, डा० धर्म सिंह को लिया 228
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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