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________________ - a sી ગોર લટકે હમ गई है। गणतंत्र युग में पेशावर से मथुरा तक क्षेत्र का नाम उतरापथ था। इसी मार्ग से जैन तीर्थकर भ्रमण करते रहे हैं। भगवान ऋषभदेव ने इस पावन भूमि को पवित्र किया। फिर इसी भाग में कुख्देश में भगवान शांतिनाथ, भगवान कधुनाथ जी, भगवान अरहनाथ का जन्म हुआ। इस धरती पर इन भगवानों के चार कल्याणक हुए। स्वयं श्रमण भगवान महावीर इस मार्ग से कई बार पधारे। अपने तपस्या काल में वह सैयविया (स्यालकोट), थूनाक सन्निवेश (कुरूक्षेत्र), हस्तिनापूर, मोका (मोगा), वीतभपत्तन (मेरा पाकिस्तान व रोहतक नगरी में पधारने का इतिहासक प्रमाण उपलब्ध है। लाखों साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकाओं ने इस क्षेत्र को जैन कला, पुरातत्व, व मन्दिरों से भर दिया। यहां विपूल मात्रा में साहित्य लिखा गया। श्वेताम्बर जैन पट्टावलीयों मे इस क्षेत्र में हुए जैन धर्म के प्रचार का वर्णन है। प्राचीन पंजाब की सीमाओं में सिन्धु, सोविर, जम्मू कश्मीर, हिमाचल, पूर्व व पश्चिमी पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश का मेरट जिला के आस पास का क्षेत्र व राजस्थान का गंगानगर जिला था। कल्हण की राजतरंगणी इस बात की साक्षी भरती है कि अनेक सम्राटों ने जैन धर्म का प्रचार इस क्षेत्र में किया था। श्री नगर की स्थापना जैन जा अशोक ने की थी। जो मोर्य अशोक से भिन्न था। भगवान महावीर के वाद भी जैन धर्म का प्रचार इस क्षेत्र में होता रहा। इस का कारण भगवान महावीर के निर्वाण के २४०० वर्ष तक मथुरा जैन धर्म, कला का केन्द्र था। वैसे भी सिन्धु घाटी की सभ्यता में जैन धर्म से संबंधित कई मुद्राएं उपलब्ध हैं। यह प्रान्त बहुत से जैन धर्म के प्रचारकों की जन्म भूमि, कर्म भूमि, दीक्षा भूमि है। पंजाव के राजाओं ने जैन धर्म को राजधर्म के रूप 199
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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