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________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम स्वरूप का कथन किया है। आचार्य, उपाध्याय व साधु के गुणों का वर्णन भी किया। इस मंत्र की प्राचीनता का प्रमाण कलिंग के राजा खारवेल द्वारा लिखित शिलालेख से प्राप्त होती है। जो दूसरी ई० पू० सदी का है। उस का मंगलाचरण इस के प्रथम दो पदों से किया गया है। प्राचीन भगवती सूत्र में इस मंत्र को मंगलाचरण के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। पांच पड़ ही सारे जैन साहित्य के विस्तार का आधार है इस मंत्र के अराधना व ध्यान से अनेक जीव मुक्ति रहे हैं भविष्य में जाएंगे। इस पुस्तक का विमोचन ३१ मार्च १६७२ को हुआ था। समाधि मरण प्रार्किणक ६ जैन धर्म में समाधि मरण का बहुत महत्वपूर्ण भाषा में संथारा कहते हैं । - १. स्थान है । समाधि मरण को आम यह दो प्रकार का होता है । सागार २ आगार चारों अहार के चाग संपूर्ण संथारा है। संथारा आत्म हत्या नहीं । आत्मा हत्या के पीछे संसारिक इच्छाओं की आपूर्ति ना होना मुख्य कारण है । संथारा स्वेच्छा से वहादुरी पूर्वक उस समय स्वीकार किया जाता है जव शरीर धर्म साधना में सहायता करनी बंद कर दे। शरीर को सुख पूर्वक धर्म में लगांना ही समाधिमरण है। प्रस्तुत प्रकीर्णक की १२ गाथाओं में इस विषय का महत्वपूर्ण विवेचन प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रंथ काफी प्राचीन है। इसका वर्णन नंदी सूत्र में उपलब्ध नहीं होता है । प्रकिणक ग्रंथ उत्कालिक में आते आचार्य श्री जिनचन्द्र सूरी ने अपने विधि भाग "प्रपा " में इस ग्रंथ का उल्लेख किया है । इस ग्रंथ के शुरू में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव व अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर को वन्दन किया गया है। 1 168
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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