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________________ -आस्था की ओर बढ़ते कदम चाहिए।" . . ....... र; इस आगम के अनुवाद में बहुत कठिनाईयां आई। इस आगम के प्रथम भाग की भाषा काफी प्राचीन है। पंजावी भाषा में अनुवाद के लिए योग्य शब्दों का आभाव वहुत खटका। . सारा कार्य हम दोनों ने एक वर्ष में पूरा किया। एक वर्ष विद्धानों को दिखाने व विमर्श में लग गया। फिर हमारी प्रेरिका साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज का आर्शीवाद व प्रेरणा से यह आगम प्रैस में गया। इस आगम के अनुवाद में विद्धानों का हमें उतना सहयोग नहीं मिला जितना श्री उतराध्ययन सूत्र के संर्दभ में मिला था। फिर भी प्रभु महावीर का आशीवाद हमारे साथ था। इसी का सुफल था कि यह अनुवाद कठिन होते हुए भी. हमें सुगम लगा। इस तरह इस आगम का पंजावी अनुवाद व्याख्या सहित तैयार हो गया। ___ एक वर्ष इस अनुवादक के प्रकाशन में लग गया। पंजाव में आतंकवाद का समय था। कुछ श्री आत्म जैन प्रिंटिंग प्रैस में ज्यादा होने के कारण कुछ भाग इस आगम को हमें वाहर से छपवाना पडा। मेरे धर्म भ्राता श्री रविन्द्र जैन ने सारे प्रूफ पढे। जिल्द की व्यवस्था हुई। कुछ भाग ज्ञानी प्रिटिंग प्रैस ज्ञानी की थी। वह पंजाबी भाषा में कुशल था। हमारा कार्य इस प्रैस से जल्द पूरा हो गया। उसका कारण यह था कि उस प्रैस में सारा कार्य पंजावी में होता था। प्रैस घर में थी। इस के विपरीत श्री आत्म जैन प्रिटिंग प्रैस में हिन्दी में काम की अंवार लगी हुई थी। पर प्रेस के मैनेजर श्री राजकुमार शर्मा का सहयोग भी महत्वपूर्ण रहा। ... इस आगम के लिए दो शब्द फ्रांस की जैन विदूषी डा० नलिनी बलवीर ने लिखे। इस ग्रंथ का विमोचन 164
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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