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________________ -आस्था की ओर बढ़ते कदम इस के प्रश्न का जो कुण्डोलिक उत्तर देता है वह दार्शनिक जगत में बहुत महत्त्व रखता है। वह कहता है " हे देव ! तुम्हे देवलोक में इस प्रकार की ऋिधि सिद्धि किस प्रकार प्राप्त हुई ?" देव ने कहा "हे देवानुप्रिया ! मुझे यह अलोकिक देवत्व विना पराक्रम व परिश्रम से प्राप्त हुआ है।" कुण्डकोलिक ने कहा "हे देव ! जो तुम्हें अलोकिक बुद्धि विना उथान, पराक्रन आदि से प्राप्त हुआ है तो जिन जीवों के पास उत्थान, पराक्रम आदि नहीं वह सव देव क्यों नहीं बनते ? तुम्हारा कधन मिथ्या है प्रभु महावीर का धर्म सत्य पर आधारित है। इस वार्तालाप के वाद देव चला गया। श्रमण भगवान महावीर उस के नगर में धर्म प्रचार करते हुए पधारे। वह भी प्रभु महावीर के दर्शन पहुंचा। प्रभु महावीर सर्वज्ञ सर्वदर्शी थे। अपनी धर्म सभा में प्रभु महावीर ने देवता कुण्डकोलिक के साथ हुई देव चर्चा की घटना को दोहराया। उन्होंने फुरमाया, “अगर घर में रह कर कोई श्रावक देवता को धर्म चर्चा में हरा सकता है, तो आप ने अनगार हो अंग उपांग के जानकार हो आप के लिए क्या असंभव है ? आप को इस श्रावक से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए। सातवां अध्ययन में कुंभकार जाति के श्रावक सद्धाल पुत्र का वर्णन है। यह मंखलि पुत्र गोशालक का परम उपासक था। इस की पत्नी भी गोशालक भक्ति में डूबी रहती थी। एक रात्रि एक देव ने तीर्थकर जिन वीतराग के आगमन की सूचना दी। सद्धालपुत्र गोशालक को तीथंकर, मानता था। अगली सुवह प्रभु महावीर पधारे। प्रभु महावीर ने सद्धालपुत्र को सदमार्ग पर लगाया। फिर गोशालक उस के यहां आया। उसने उसका सम्मान पहले की तरह नहीं किया। पर जव गोशालक ने प्रभु महावीर की प्रशंसा की तो 156
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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