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________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदा मृगापूत्र के माध्यम से श्रमण भवान महावीर से संसार को वैराग्य मय उपदेश दिया। यह अध्ययन जीवन को बदलने की क्षमता रखता है। गाथा की संख्या ६८ है। २०वें अध्ययन का नाम महानिर्गथीया अध्ययन है। यह इतिहास अध्ययन में राजा श्रेणिक की मण्डी कुक्षी चेत्य में ध्यान कर रहे अनाथी मुनि की धर्म चर्चा है। राजा श्रेणिक ने अनाथी मुनि के रूप, लावण्य को देख कर कहा " भिक्षु मुझे वताओ कि तुम भिक्षु क्यों तुम साधु बन गए ? तुम्हारे मन में कौन सी चोट थी, जो तुम्हे इस मार्ग पर ले आई। अनाथी मुनि ने उत्तर दिया “ राजन ! मैं अनाथ धा इस लिए मुनि वन गया।" राजा ने सोचा यह यतीम वालक है। मुझे इस की सहायता करनी चाहिए। राजा ने पुनः कहा "मैं तुम्हारा नाथ बनता हूं। तुम साधु जीवन त्याग कर मेरे महिलों में चलो।" अनाथी मुनि ने उत्तर दिया "राजन ! जो स्वयं अनाथ है वह किसी का नाथ कैसे बन सकता है ?" राजा को अपनी अनाथता का अर्थ समझ न आया। उसने कहा "मुनि राज शायद आपको पता नहीं कि मैं मगध सम्राट विंवसार श्रेणिक हूं। यह जो मेरे यहां संसार की हर सुख सुविधा मौजूद है। तुम मेरे साथ चलो और जीवन का आनंद व सुख का उपभोग करो।" राजा के इस भोग निमंत्रण से मुनिराज को राजा की अज्ञानता पर तरस आया फिर मुनिराज ने इस अध्ययन के माध्यम से अपनी पूर्व जीवन कथा वताते हुए अपनी कथा सुनाई। “राजन् मैं भी आप की तरह एक राजकुमार था। मेरा भी भरा-पूरा परिवार, धन संपदा थी। मेरे पास अनेकों दास व दासीयां, सेना व पशुधन था। मेरे परिजन व प्रजा मेरी आज्ञा का पालन करते थे। सव कुछ ठीक ढंग से चल रहा था पर अशुभ कर्म उदय से एक वार मुझे एक 147
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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