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________________ = आस्था की ओर बढ़ते कदम हुए पावापुरी नगरी में चर्तुमास हेतु पधार चुके थे। प्रभु का यह अंतिम चुर्तमास था। प्रभु महावीर का प्रथम क्रान्तिकारी उपदेश भी इसी नगर में हुआ था। जिस में इन्द्रभूति सहित ४४०० से ज्यादा ब्राह्मणों ने प्रभु महावीर के कर कमलों से दीक्षा ली थी। प्रभु महावीर सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतराग, अरिहंत, तीर्थकर वन चुके थे। वह सर्व जीवों के कल्याणार्थ धर्म उपदेश कर रहे थे। चर्तुमास का काफी भाग व्यतीत हो चुका था। प्रभु महावीर एक चुंगी में ठहरे थे। अंतिम समय जानकर प्रभु महावीर ने अंतिम धर्म उपदेश देना शुरू किया। यह उपदेश ही उतराध्ययन सूत्र में लिपिबद्ध है। इस के ३६ अध्याय हैं। प्रत्येक अध्ययन अपने आप में स्वतन्त्र विषय है। यह ग्रंथ जैन धर्म का सार भूत ग्रंथ कहा जा सकता है। इस ग्रंथ में प्राचीन काल से टीका, टव्वा नियुक्ति चुर्ण लिखी जाती रही है। इस ग्रंथ पर ४६ के करीव टीकाएं प्राचीन काल से १८ सदी तक लिखी जा चुकी हैं। यह टीकाएं श्री अगर चन्द नाहटा के भण्डार में देखी जा सकती हैं। ___इस ग्रंथ की प्राचीनता वौद्ध ग्रंथ धम्मपद व महाभारत में देखी जा सकती है। दोनों ग्रंथों के कई श्लोक का तुलनात्मक अध्ययन उतराध्ययन सूत्र से किया जा सकता है। प्रवर्तक श्री फूल चन्द जी 'श्रमण' ने इस सूत्र के बारे में कहा है : "जो कुष्ठ उतराध्ययन सूत्र में है, वह सारे जैन आगमों में है, जो उतराध्ययन सूत्र में नही, वह किसी आगम में नहीं। आगम से प्रतिपादित हर विषय श्री उतराध्ययन सूत्र में उपलब्ध होता है।" ऐसे महत्वपूर्ण सूत्र का अनुवाद हमने १९७३ में करना शुरू किया जो १६७६ में प्रकाशित हुआ। प्राचीन 141
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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