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________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम करता है। यह सम्प्रदायः आचार्य कुन्दकुन्द जैसे ज्ञानीयों द्वारा रचित साहित्य को आगम तुल्य मानता है। दोनों परम्पराओं में विशेष सिद्धांतिक मतभेद नहीं, हां कुछ वातों को लेकर मामूली मतभेद हैं। श्वेताम्बर साहित्य में कुछ आगम काफी प्राचीन हैं। उनकी भाषा काफी प्राचीन है। कुछ आगमों की गाथाएं दिगम्वर ग्रंथ मूलाचार में उपलब्ध हैं । समस्त जैन साहित्य का कभी पंजावी अनुवाद नहीं हुआ था । इस का मुख्य कारण पंजावी भाषा की एक लिपि न होना भी हो सकता है । स्वतंत्रता से पहले पंजाबी, फारसी गुरूमुखी अक्षरों में लिखी जाती थी, अव भी पाकिस्तान में पंजावी फारसी लिपि लिखी व पढ़ी जाती है । स्वतन्त्रता के पश्चात् इस भाषा की लिपि सिक्खों की धर्म लिपि गुरूमुखी हो गई । इन्हीं गुरूमुखी अक्षरों को पंजावी के रूप में मान्यता मिली । १९६७ के बाद पंजावी भाषा सरकारी भाषा वन गई । पंजाव में रहने वाले साधारण जैन व अन्य लोग इस भाषा में साहित्य उपलब्ध न होने के कारण जैन धर्म से अनभिज्ञ थे। यह कमी जहां मुझे अखर रही थी, वहां गांव में प्रचार करने वाले साधु साध्वी भी इस कमी को महसूस करते थे, परन्तु उनका काम हिन्दी में चल जाता था । काम रूकता तो गांव में आकर था । इन सभी कमीयों को देख कर मैंने अपने धर्म भ्राता श्री रविन्द्र जैन से विचार विमर्श किया । यह विमर्श ही हमारे साहित्यक भविष्य का आधार बना । हम ३१ मार्च १६६६ को जव मिले थे, तब से ही स्वाध्यायशील थे। बहुत सी जैन धर्म व अणुव्रत की परिक्षाएं पास की थी । श्री रविन्द्र जैन तो पांचवीं कक्षा से जैन शिक्षा ग्रहण कर रहा था। हमें अपना उद्देश्य समझ में आ चुका था । गुरूओं का आर्शीवाद हमारे साथ था । उपाध्याय श्री अमर मुनि जी 137
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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