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________________ = आस्था की ओर बढ़ते कदम प्रकरण - १० हमारा साहित्य साहित्य किसी समाज का दर्पण होता है। जैन साहित्य भारतीय व विदेशी भाषा में प्रकाशित हुआ, हो रहा है, भविष्य में भी होगा। जैन आचार्यों ने जीवन के हर पक्ष पर हर भाषा में साहित्य भारतीय संस्कृति को प्रदान किया है। आज भी लाखों हस्तलिखित ग्रंथ भण्डारों में अप्रकाशित अवस्था में पडे है। जिनका स्वाध्याय करने के लिए अनेकों संस्थाओं का निर्माण हुआ है। जैन आचार्य श्री आत्मा राम जी महाराज कहा करते थे, "जैनों से कई गुणा जैन साहित्य है।" जैन आचार्यों ने साहित्य निमार्ण का एक सागर रचा है। यह परम्परा भगवान ऋषभदेव से भगवान महावीर तक पूर्वो, अंगों, उपांग, छेद सूत्रों प्रर्किणक के रूप में विद्वान रहीं। भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात पूों का ज्ञान लुप्त हो गया। पूर्वो का ज्ञान कितना विशाल था व अन्य आगम जो उपलब्ध हैं उनकी भव्यता का अनुमान देववाचक संकलित नंदी सूत्र में देखा जा सकता है। भगवान महावीर ने मोक्ष के लिए ज्ञान का सर्व प्रथम तत्व माना है। जिस ज्ञान में कोई शंका न हो। जिसे सर्वज्ञों ने कथन किया हो। ऐसे ज्ञान के सबंध में प्रभु महावीर ने मोक्ष मार्ग का कारण बताया है। ___ मोक्ष मार्ग में ज्ञान की महत्त्ता को स्वीकार करते हुए प्रभु महावीर फुरमाते हैं : पढमं णाणं तओ दया “साधक को प्रथम ज्ञान अर्जित करना चाहिए उस के पश्चात् उस ज्ञान के अनुसार दवा (करूणा) आदि नियमों का पालन करना चाहिए।" 135
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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