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________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम तीथंकरों के संघ में हमेशा साधीयों व श्राविकाओं की संख्या । अधिकांश मात्रा में रही है। स्वयं श्रमण भगवान महावीर के श्री संघ में आर्य चन्दना सहित ३६००० साध्वीयों का परिवार था। इन साध्वीयों में हर देश, कुल जाति, रंग, नस्ल व वर्ण की साध्वीयां थी। भगवान महावीर के वाद जैन धर्म में श्रमणी में परिवार चलता रहा। जैन इतिहास साध्वीयों के कारनामों से भरा पड़ा है। प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की पुत्रीयों वाह्मी, सुन्दरी का अपना इतिहास है। १६ तीर्थकर भगवती मल्ली थीं। साध्वी राजुल की गौरव गाथा जैन इतिहास की शान है। पंजाब के स्थानकवासी इतिहास में सुनाम की साध्वी ज्ञाना का महत्वपूर्ण स्थान है। कहते हैं एक समय ऐसा भी आया, जब पंजाद में कोई साधू न रहा। ऐसे में सुनाम के श्री ज्ञाना जी महाराज ने अपने भानजे को संयम पथ पर आरूढ़ कर, साधु बनाया। उन्हें आगम का ज्ञान दिया। धीरे धीरे उनके शिष्य परिवार में साधुओं की संख्या वढ़ने लगी। समय आने पर साध्वी ज्ञाना जी ने उन्हें आचार्य पद से विभूषित किया। साध्वी पार्वती जी महाराज का ऐसे साध्वी परिवार से रिश्ता था जिस ने जैन धर्म की रक्षा के लिए सब कुछ समर्पित कर दिया। अवार्ड का सिलसिला चालु हो चुका था। अब विद्वानों की खोज शुरू की। इस खोज में कुछ इतिहासक व्यक्तियों को अवार्ड दिए गए। जिस से अवार्ड की शोभा को चार चांद लग गए। हमने एक समारोह दिल्ली में साध्वी डा० सरिता जी महाराज के नेश्राय में रखा। इस में फ्रांस की प्रसिद्ध जैन विदूषी डा० सी. कैव्या व डा० नलिनि वलवीर पधारी। यह अवाडों का सुझाव डा० भट्ट ने रखा था। उस जमाने में देहली में वीडियो ग्राफी आ चुकी थी। इस अवार्ड के वितरण से पहले हम साध्वी स्वर्ण कांता जी महाराज के 127
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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