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________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम मुकदमे की पैरवी के लिए आगरा आते तो इस जैन मित्र के यहां ठहरते थे, वहां आप के पिता श्री वलदेव सिंह का परिचय जैन साधुओ से हुआ। श्री बलदेव सिंह जैन मुनियों के प्रवचन सुनने लगे। जैन मुनियों का तप, जप व स्वाध्याय पूर्ण जीवन उन्हें अच्छा लगता था । बलदेव सिंह व उनकी धर्मपत्नी अपनी संतान से बहुत स्नेह करते थे । एक बार श्री बलदेव सिंह अपनी बेटी पार्वती को लेकर आगरा में आए। वहां जैन मुनियों का प्रवचन सुना । दर्शन वन्दन किया। पहली ही भेट में बालिका पार्वती जैन मुनियों के जीवन से बहुत प्रभावित हुई । वह आचार्य नागर मल्ल जी से बहुत प्रभावित हुई। आचार्य श्री ने ज्योतिष के आधार पर श्री बलदेव सिंह को बताया कि तुम्हारी बेटी साध् रण वालिका नहीं है यह भविष्य में जैन धर्म की शोभा बढ़ाएगी ! अच्छा है इस लड़की को आप जैन धर्म को समर्पित कर दो। श्री बलदेव सिहं ने कहा, "महाराज ! मैं आप की हर बात मानने को तैयार हूं, पर इतना बड़ा फैसला लेने से पहले मुझे इस वालिका की माता से विमर्श करना पड़ेगा। वापिस आ कर माता-पिता ने सहमति से वालिका को आचार्य श्री को समर्पित करने का निर्णय किया। आचार्य . श्री ने इस वालिका को साध्वीयों के सुपुर्द कर दिया। उस समय आप अल्पायु में थे। आचार्य श्री के शिष्य परिवार में आप ने जैन धर्म के शास्त्रों का अध्ययन शुरू किया। संस्कृत, प्राकृत, उर्दू, हिन्दी, गुजराती व फारसी भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया। आप ने थोड़ा अंग्रेजी भाषा का अध्ययन भी किया। मात्र १३ वर्ष की आयु में आप अपनी ३ सखियों के साथ साध्वी वन गई । साध्वी बनते ही आप ने 122
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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