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________________ दुर्लभो विषय त्यागः, दुर्लभं तत्त्वदर्शनम्। दर्लभा सहजावस्थां, सद्गुरोः करुणां बिना।। गुरु की विनय के बिना तत्त्वदृष्टि प्राप्त होनी संभव नहीं है और न ही उनकी शरणागति के बिना सहजावस्था ही संभव है। गुरु एक-एक पंक्ति में सुख का मार्ग प्रदर्शित करते हैं। उनकी एक-एक बात सारभूत है। लोक में ऐसा कोई उत्कृष्ट स्थान नहीं तथा वह कोई उत्कृष्ट हित नहीं, जिसको कि योगीजनों के चरण-कमलों का आश्रय लेने वाले महापुरुष प्राप्त न कर सकें। मोक्षमार्ग में गुरु का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि सिद्ध भगवान् तो बोलते नहीं हैं। साक्षात् अरहन्त भगवान् जो बोलते हैं, उनका इस समय अभाव है। यहाँ पर स्थापना-निक्षेप से जो अरहन्त भगवान् हैं, वे बोलते नहीं हैं। अतः मोक्षमार्ग में गुरु ही सहायक सिद्ध होते हैं। मार्ग पर चलते समय यदि कोई बोलने वाला साथी मिल जाता है, तो मार्ग तय करना सरल हो जाता है। निर्ग्रन्थ गुरुमहाराज हमारे मोक्षमार्ग में बोलनेवाले साथी हैं। इनके साथ चलने से हमारा मोक्षमार्ग सरल हो जाता है। गुरु की महिमा अचिन्त्य है गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागूं पाय। ___बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय ।। गुरु की महिमा अपरंपार है। गुरु शिष्य को भगवान् बना देते हैं। गुरु स्वयं तो सत्यपथ पर चलते ही हैं, साथ ही दूसरों को भी चलाते हैं। इसलिये गुरु का महत्व अनुपम है। जो भी सच्चे वीतरागी गुरुओं की पूजा–भक्ति करता है, उनके बताये हुये मार्ग पर चलता है, वह एक दिन कर्मों की श्रृंखला को तोड़कर अपने आत्मस्वरूप में लीन होकर शाश्वत मोक्षसुख को प्राप्त कर लेता है। गुरुओं की परम्परा से आज भी हमें जिनवाणी सुनने को मिल रही है। भगवान् महावीर स्वामी जब मोक्ष पधारे थे, उस समय चतुर्थकाल का तीन वर्ष साड़े आठ माह समय शेष था। वाससयं तहकालो परिगलि ओ वड्ढमाणतित्थेसु। एसो भवियं जाणहु भरहे सुदकेवली पत्थि।।72 ||(श्रुत स्कन्ध) कार्तिक वदि 14 के दिन बीते बाद/उपरान्त रात्रि में जब अन्तर्मुहूर्त रात्रि DU 93 0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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