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________________ में व्यापकता आ जाती है। सोचने और देखने का ढंग सकारात्मक होता है। पाण्डवो को वनवास हो गया। माँ कुन्ती विदुर के पास हस्तिनापुर में रह गई। एक दिन उन्होंने दुर्योधन से मिलने राजमहल में जाने की बात विदुर से कही। विदुर चकित हो गए और कहा कि आपके पुत्रों के साथ जिन्होंने बुरा व्यवहार किया, उन्हीं से मिलने आप स्वयं जा रही हैं? एक बार विचार कर लें। माता कुन्ती बोली- हाँ, मैं उनके मन का द्वेषभाव मिटाने जा रही हूँ। मैं इतनी गई-बीती नहीं हूँ कि अपने प्रति द्वेष रखने वाले को क्षमा न करूँ। मैं उनके मन का द्वेष नहीं मिटा सकती तो अपने मन को गंदा क्यों करूँ? इतना बढ़िया सोच, ऐसी विशाल दृष्टि ही व्यक्ति को महान बनाती है। प्रवचन-वत्सलत्व ऐसी ही महान आत्माओं के भीतर उत्पन्न हो पाता है। हमें प्रयास करना चाहिए कि साधर्मी के प्रति हमारा सोच, हमारी दृष्टि ऐसी ही निर्मल और व्यापक हो। ___वात्सल्य के लिए जरूरी है परस्परता का बोध । मिल-जुलकर करने की भावना या एकता का भाव। ऐसा भी जरूरी नहीं है कि दोनों के विचारों में साम्य हो। वैचारिक विविधता या मतभेद रह सकता है, पर मनभेद नहीं होना चाहिए, मनमुटाव नहीं होना चाहिए। सुख-दुःख में साथ देने का भाव बना रहना चाहिए। एकता और परस्परता का बोध यही है। जब गन्धर्षों ने दुर्योधन सहित हस्तिनापुर के सारे गोधन को बंदी बना लिया था और धृतराष्ट्र के कहने से युधिष्ठिर सबको मुक्त करने गन् पर्यों से युद्ध करने को तैयार हो गए थे तो भीम ने विरोध किया था। युधि ष्ठिर की आँखों में आँसू आ गए थे तो भीम की बात सुनकर । अर्जुन ने तब आगे बढ़कर कहा था-हे भइया! आप निश्चित रहें। मैं जाता हूँ सभी को मुक्त कराने। हम सब भले ही महल के भीतर सौ और पाँच अलग-अलग हैं, पर दुनियाँ के सामने तो हम एक सौ पाँच भाई हैं। भाई-भाई के बीच या कहो साधर्मीजनों के बीच ऐसा ही एकता का भाव 0 794_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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