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________________ था। दान से प्रभावना कैसे होती है? जब दान से अपने भाव निर्मल हो जाएँ, निर्लोभ-वृत्ति आए और दूसरे का भी उपकार हो। तपस्या से प्रभावना होती है। चारित्रचक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर जी महान तपस्वी थे। अपने जीवन में उन्होंने लगभग दस हजार उपवास किए। नीरस भोजन करने की साधना की। अनेक उपसर्ग और परीषहों को जीता। सिंह आकर उनके समीप बैठा रहा, सर्प उनके शरीर से लिपटा रहा, पर वे अपने आत्मध्यान में लीन रहे। आचार्य शान्तिसागरजी महाराज ने अपनी निर्दोश मुनिचर्या और तपस्या के द्वारा जैनमुनि की वीतराग दिगम्बर छवि की महिमा सारे देश में फैलाई। आज अपन सभी लोग उनके इस उपकार के कारण वर्तमान में शान्तिपूर्वक अपना धर्म्यध्यान कर पा रहे हैं, वरना उस समय मुनिराज का विहार आदि भी कहीं-कहीं बहुत मुश्किल से हो पाता था। आज हमारा यह भी सौभाग्य है कि हम लोग आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के दर्शनलाभ ले रहे हैं। वे ज्ञान, ध्यान और तप की मूर्ति हैं। आज उनके द्वारा जो त्याग-तपस्या की जा रही है वह मोक्षमार्ग की सच्ची प्रभावना है। उन्होंने अपने जीवन में लगातार नौ दिन तक निर्जल उपावास किए हैं। घंटों निर्जन जंगल में जीव-जन्तुओं के बीच तपस्या की है। अपने विशाल संघ का कुशलता से प्रवर्तन करते हुए भी निस्पृहतापूर्वक अपने आत्मकल्याण में तत्पर रहना, यह बहुत बड़ी तपस्या है। आज उनके द्वारा जो मोक्षमार्ग की प्रभावना की जा रही है, वह अपूर्व है। जिनेन्द्र भगवान् की पूजा से भी धर्म की प्रभावना करने वाले लोग हुए हैं। सिद्धचक्रमण्डल विधान करके मैनासुंदरी ने अपने असाता कर्मों की निर्जरा की। श्रीपाल के भी परिणाम निर्मल होने से व जिनपूजा के प्रभाव से असाता कर्म नष्ट हो गए। पुण्य का संचय हुआ। व्याधि शान्त हो गई। सब ओर जिनधर्म की जय-जयकार हुई। आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने, 10_779_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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