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________________ शुरू कर दिया ताकि धूल कम लगे वर्णीजी को। उन चार सवारियों में से एक व्यक्ति ताँगे वाले से थोड़ा गुस्से में बोल पड़ा कि देखो, इस आदमी (वर्णीजी) के लिए तुमने तांगा तेज चलाना शुरू कर दिया और इतनी देर से हम जल्दी चलाने को कह रहे थे तो हमारी बात नहीं सुनी। पैसे तो हम भी देंगे। ताँगे वाले की आँखों में आँसू आ गए, उसने हाथ जोड़ लिए और कहा- "आप लोग नाराज न हों। पैसा ही सबकुछ नहीं है। पैसे तो हमें सबसे मिलते हैं। पर इन्होंने (वर्णीजी) जो दो पेड़े प्यार से दिए हैं, वह कोई नहीं देता।" ___ बात जरा-सी है, पर बहुत महत्वपूर्ण है। यही बात जीवन को ऊँचा उठाती है, जीवन को सार्थकता देती है। हम मात्र इन्द्रिय-सुख और मन की इच्छाओं की पूर्ति के लिए जीवन भर दौड़ते रहते हैं। पर कभी पूर्ति नहीं हो पाती। झोपड़ी में रहो या आलीशान बंगले में, आप बहुमूल्य वस्त्र पहनो या साधारण-सी खादी पहनो, इन सबसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। जीवन की सार्थकता तो स्व–पर कल्याण की भावना भाने में ही है। अपना और प्राणीमात्र का कल्याण चाहने वाला ही तीर्थंकर-पद को पाता है। अपने जीवन को सार्थक करता है। मानवजीवन एक महान् जीवन है। क्योंकि सभी पर्यायों में यह मानव पर्याय उत्तम है। चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करते हुये आज हमें यह मनुष्यपर्याय प्राप्त हुई है। अतः इसकी सार्थकता धर्म करने में ही है, जैसा कहा भी है आहारनिद्राभयमैथुनंच सामान्यमेतद् पशुभिर्नराणामः। धर्मो हि तेषामधिको विशेषः, धर्मेणहीनाः पशुभिः समानाः।। भोजन, निद्रा, भय और मैथुन क्रियाएँ मनुष्य और पशु में समान रूप से हैं। मनुष्यों में केवल धर्म ही विशेष है, जो इन्हें तिर्यंचों से अलग करता है। धर्म से हीन मनुष्य पशु के समान है। आज हमें सभी सुलभ एवं 0_771_0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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