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________________ लगे। पर वह क्या करे, वह तो अनपढ़ थी बेचारी । सासू ने फिर समझाया कि बहू! ऐसे में तो गीत गाकर खुशी जाहिर करनी चाहिए। तुमने गड़बड़ कर दी। तीसरी बार जब पड़ौसी के यहाँ आग लगी तो बहू जाकर गाना गाने लगी, खुशी जाहिर करने लगी । बात इतनी ही है कि जो काम जिस समय करना है, उसे नहीं किया जाए, तो सब अव्यवस्थित हो जाता है । हमारा जीवन क्यों अव्यवस्थित है? T क्यों अस्त-व्यस्त हो जाता है? हम क्यों अपना जीवन अच्छा नहीं बना पाते, अपना कल्याण नहीं कर पाते ? सबका एक ही उत्तर है कि हम करने योग्य आवश्यक कार्य समय पर नहीं करते। हर बार चूक जाते हैं। जो अपने इन्द्रिय व मन पर नियंत्रण नहीं रख पाता, वही विवश है । विवश होकर संसार में भटकता रहता है । जीवन की आपाधापी उलझा रहता है । सारा जीवन यूँ ही बीत जाता है। वह बहू तो बेचारी अनपढ़ थी, इसलिए जैसा कह दिया वही करने के लिए विवश थी, पर हम तो पढ़े-लिखे हैं, समझदार हैं, फिर भी हम अपना कर्तव्य समय से नहीं कर पा रहे हैं। हमें समय रहते सचेत होकर अपने इन्द्रिय व मन की ग्रिप से ( नियंत्रण से) बाहर निकल आना चाहिए । इन्द्रिय और मन की पकड़ से बाहर आने का सीधा-सा उपाय है कि हम इन्द्रिय व मन का सदुपयोग करें। जो व्यक्ति इन्द्रिय और मन का सदुपयोग करना सीख लेता है, वह व्यक्ति स्वयं ही इन्द्रिय और मन की पकड़ से बाहर निकल जाता है । वह अपने इन्द्रिय और मन को नियंत्रित कर लेता है । इन्द्रिय और मन का सदुपयोग करने का मतलब है उन्हें धर्म्यध्यान में लगाए रखना। जिसने अपने इन्द्रिय और मन को विषय-भोग में लगा रखा है, मानिए वह उनका दुरुपयोग कर रहा है और स्वयं इन्द्रिय व मन के आधीन है। वह इन्द्रिय व मन की पकड़ में है । 7692
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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