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________________ बताये गये मोक्षमार्ग पर चलकर अपनी आत्मा का कल्याण करें। आज तक धर्म को ऊँचा उठाने का कार्य आचार्यों ने ही किया। महावीर स्वामी के बाद सुधर्माचार्य, जम्बूस्वामी आदि केवलियों द्वारा अनेक वर्षों तक अंगज्ञान सुरक्षित रहा। भद्रबाहु स्वामी एक बार उज्जयिनी में आहार को गये। वहाँ पर एक बालक पालने में झूल रहा था। उसकी आवाज सुनकर उन्होंने कहा कि यहाँ पर बारह साल का अकाल पड़ने वाला है। तभी भद्रबाहु आचार्य कुछ शिष्यों के साथ दक्षिण की तरफ प्रस्थान कर गये और श्रमण धर्म को बचाया । ऐसे आचार्य इस पावन भूमि पर हुए। श्री कुन्दकुन्द आचार्य ने धर्म प्रचार हेतु अनेक शास्त्र लिखे। आचार्य उमास्वामी ने 'तत्त्वार्थ सूत्र' की रचना की। श्री पूज्यपाद स्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र की टीका करके 'सर्वार्थसिद्धि' नामक ग्रन्थ की रचना की। श्री अंकलंकदेव ने 'राजवार्तिक' तथा श्री विद्यानन्द स्वामी ने 'अष्टसहस्री' और इसी तत्त्वार्थसत्र की टीक पर आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने "गंधहस्तीमहाभाष्य' लिखा। ऐसे आचार्यों के हम बहुत आभारी हैं, जिन्होंने अपना तो कल्याण किया ही, हमारा मार्ग भी प्रशस्त किया। समय-समय पर आचार्य अनेक अतिशय दिखाकर जैनधर्म का प्रचार करते रहे। आचार्यों पर अनेक उपसर्ग आये, परन्तु समता भाव से सहन करके धर्म को अथवा अपने पद को गिरने नहीं दिया, गरिमा बनाये रखी । अकम्पनाचार्य आदि 700 मुनियों पर राजा बलि ने हस्तिनापुर में उपसर्ग किया। श्री वादिराज मुनिराज ने कोढ़ दूर करके अतिशय दिखाया। श्री मानतुंग आचार्य ने भक्तामर स्तोत्र की रचना कर जंजीरे व 48 ताले तोड़कर अतिशय दिखाया, जिससे धर्म की प्रभावना हुई। समन्तभद्र स्वामी को भस्मक रोग हो गया था। वे जो खाते, वह भस्म हो जाता। सिद्धान्ततः जैन दिगम्बर मुनिराज 8 पहर में एक बार आहार 07430
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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