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________________ वीतरागता की प्राप्ति का उपाय करूँ, क्रोध - मान-माया - लोभ आदि समस्त कषायों का नाश करूँ । अष्ट द्रव्यों में से प्रत्येक द्रव्य एक - एक विकार के अभाव का प्रतीक है। जैसे जल यद्यपि लौकिक मलिनता का नाश करने वाला है, तथापि वह आत्मिक मलिनता को दूर नहीं कर सकता, परन्तु हे प्रभो! आपके चरणों की भक्ति से तो जन्म-जरा-मरण रूपी अनादिकालीन मलिनता का भी नाश हो जाता है, अतः इसको छोड़कर आपकी शरण लेता हूँ। जिस प्रकार चंदन लौकिक शीतलता का कारण है, वैसे ही आपकी शरण आत्मताप का हरण करने वाली है, अतः इस चंदन को छोड़कर आपकी शरण लेता हूँ, जिससे मेरे संसार - ताप का नाश हो सके। आज तक मैं इस अक्षत चावल को ही अक्षत समझता था, परन्तु अक्षयपद तो आपने प्राप्त किया है, अतः अक्षयपद की प्राप्ति के लिये इस 'अक्षत' को छोड़कर आपकी शरण लेता हूँ। लोग समझते हैं कि पुष्प से काम की दाह शांत होती है, परन्तु काम की दाह तो आपने अपने स्वभाव में ठहरकर शांत की है, अतः इसको छोड़कर कामदाह को शांत करने के लिए आपकी शरण लेता हूँ । आज तक मैंने भूख की ज्वाला को शांत करने के लिए बहुत प्रकार के नैवेद्य-मिष्ठान खाए हैं, परन्तु फिर भी भूख की ज्वाला शांत नहीं हुई । अब आपके सामने आने पर मालूम हुआ कि भूख की ज्वाला तो आपने स्वयं में ठहर कर शांत की है, अतः इसको छोड़कर आपकी शरण लेता हूँ। अभी तक यही समझा था कि दीपक से अंधकार दूर होता है, परन्तु मोहरूपी अंधकार को तो आपने दूर किया है, अतः इसको छोड़कर मोह नाश के लिये आपकी शरण लेता हूँ। मैं धूप को अग्नि में डालकर समझता था कि इससे कर्म नष्ट होते हैं, परन्तु जैसे अग्नि धूप को जलाती है, वैसे ध्यान रूपी अग्नि के द्वारा आपने कर्मों को जला दिया, अतः धूप को छोड़कर कर्म नाश के लिये आपकी शरण लेता हूँ । आज तक मैंने इन फलों को ही वास्तविक फल समझा था, किन्तु वास्तविक मोक्षफल की प्राप्ति तो आपको हुई है, अतः इस फल को छोड़कर मैं भी मोक्षफल की प्राप्ति चाहता हूँ, इसलिए आपकी शरण लेता हूँ। इस प्रकार अष्ट द्रव्यों से पूजा करके श्रावक बाहरी चीजें छोड़ता है और अंतरंग की साधना का भाव 74 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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