SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का कारण बताते हुये लिखा है। 'अरहंत णमोकारो संपहि बंधादो असंखेज्जगुणकम्मक्खयकार ओत्ति ।' अरहंत भगवान् के नमस्कार द्वारा वर्तमान में होने वाले पुण्यबंध की अपेक्षा असंख्यात गुणश्रेणी रूप कर्मों का क्षय होता है । जिनेन्द्र भगवान् के दर्शन से आत्मा की रुचि उत्पन्न होती है । 'षट्खण्डागम' सूत्र में मनुष्य के प्रथमोपशम सम्यक्त्व की उत्पत्ति के तीन कारण कहे हैं- जाति स्मरण, धर्मश्रवण तथा जिनप्रतिमा का दर्शन । इनके द्वारा प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है I मणुस्सा मिच्छाइट्ठी कदिहि कारणेहिं पढमसम्मत्त मुप्पादेंति ? तीहि कारणेहि पढम सम्मत्त मुप्पादेंति, केई जाईस्संरा, केई सोउण, केइं जिणबिंब दट्टूण | |29–30 | | (जीवट्ठाण चूलिका) आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने 'शील पाहुड़' में लिखा है- 'अरहंते सुहमत्ती' सम्मत्त।।40।। अरहंत देव में पपित्र भक्ति सम्यक्त्व है। जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिमा के दर्शन करते समय विचार करना चाहिये कि जिस प्रकार से प्रभु अपने आपमें लीन हैं, वैसे ही यदि मैं भी शरीरादि से भिन्न अपने स्वभाव में लीन हो जाऊँ, तो इसी प्रकार के अनन्तसुख को प्राप्त कर सकता हूँ एवं संसार के दुःखों से और जन्म-मरण से रहित हो सकता हूँ। जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिमा के दर्शन करने से अपना भूला हुआ स्वभाव याद आ जाता है । भगवान् की मूर्ति दर्पण की तरह है, जिसको देखने से हमारे मन की, आत्मा की कालिमा दिखाई देने लगती है, जिसे देखते ही हम उसे साफ करने का पुरुषार्थ करने लगते हैं । भगवान् की स्तुति / गुणानुवाद करने से उनके जैसे गुण प्राप्त करने की रुचि पैदा हो जाती है। उनका गुण वीतरागता है उसकी प्राप्ति की भावना और रुचि जीव की संसार - रुचि को घटाने वाली है । भगवान् की मूर्ति तो शब्दों का उच्चारण किये बिना साक्षात् मोक्षमार्ग का उपदेश दे रही है कि अगर आनन्द प्राप्त करना है तो मेरी तरह शरीरादि से भिन्न निजस्वभाव को जानो, उसमें रुचि जाग्रत करो और उसी में लीन हो जाओ, तो U 72 S I
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy