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________________ में बचपन से यौवन तक पांच बार इसके प्राणों की रक्षा हो जाती है और जिस मछली को जीवनदान दिया था वही मछली अगले भव में अंनगसेना बनकर इसको मृत्यु से बचाती है । वज्रजंघ राजा और श्रीमती रानी ने चारणऋद्धिधारी दमधर मुनिराज और सागरसेन मुनिराज को आहार दिया था। इस समय (1) मतिवर मंत्री (2) आनन्द पुरोहित ( 3 ) धनमित्र सेठ (4) अकंपन सेनापति तथा ( 1 ) सिंह (2) शूकर (3) बन्दर (4) नेवला भी आहारदान देखकर हर्षित हो रहे थे और आहारदान की अनुमोदना कर रहे थे। जब वज्रजंघ राजा ने मुनिराज से पूछा- हे नाथ! मतिवर मंत्री, आनन्द पुरोहित, धनमित्र सेठ और अकम्पन सेनापति यह चारों जीव मुझे भाई की तरह अत्यन्त प्रिय लगते हैं । कृपा करके इसका कारण बताइये? तब मुनिराज बताते हैं- मतिवर मंत्री का जीव आगे भव में आपका पुत्र भरत चक्रवर्ती होगा, अकम्पन सेनापति बाहुबली कामदेव होगा, आनंद पुरोहित वृषभसेन नामक पुत्र होकर गणधर होगा, धनमित्र सेठ अनंतवीर्य नामक पुत्र होकर आपका ही गण होगा। सिंह आदि चारों जीव भी भविष्य में आपके पुत्र होकर मोक्ष प्राप्त करेंगे। आहारदान की अनुमोदना करके इन चारों तिर्यंच प्राणियों ने भी भोगभूमि की आयु बांधी थी। अब यहाँ से आठवें भव में वज्रजंघ राजा ऋषभनाथ तीर्थंकर होकर मोक्ष प्राप्त करेंगे, तब यह चारों जीव भी उसी भव में मोक्ष को प्राप्त करेंगे। मोक्ष तक के सातों भव में यह सब जीव साथ-साथ ही रहेंगे। पूर्व भव में किये पुण्य एवं पाप कर्मों का फल सभी को भोगना पड़ता है। राजा यशोधर अपनी रानी अमृतामति के दुश्चरित्र से खेदखिन्न होकर जिनदीक्षा धारण करना चाहता था, लेकिन माता चंद्रमति आज्ञा नहीं देंगी, मना करेंगी, इसलिए माता से कहता है- माँ! रात्रि में मैंने दुःस्वप्न देखा है, इसलिए मैं जिनदीक्षा लेकर अपना कल्याण करूँगा । माँ कहती है- बेटा! उसके लिए जिनदीक्षा धारण करने की कोई आवश्यकता नहीं । अपनी कुल - देवी को मुर्गे की बलि देने से सब संकट दूर होंगे। यशोधर राजा मना कर देते हैं कि U 69 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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