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________________ कपटरहित कहा- फिर बच्चे होंगे तो उनकी शादी वगैरा कौन करेगा? राजा ने कहा- अच्छा 10 ग्राम और लगा दूँगा। साधु ने कहा-अगर घर में कोई मर गया तो फिर कौन रोवेगा? राजा ने कहा-महाराज! मैं और सबकुछ तो कर सकता हूँ, पर मैं रो नहीं सकता। रोना तो आपको ही पड़ेगा। जिसके ममता है, वही रोवेगा। सो भैया! मुफ्त की इस ममता से दुःख ही रहेंगे, तत्त्व की वृत्ति कुछ भी नहीं रहेगी। - इस प्रकार पुत्र, मित्र, कलत्र, संसार, शरीर, भोगों का दुःखकारी स्वरूप जानकर विरागभाव को प्राप्त होना ही संवेग है। संवेग भावना का निरंतर चिंतन करना ही श्रेष्ठ है। अतः मेरे हृदय में निरन्तर संवेग भावना रहे, ऐसा चिंतवन करते हुये संसार-शरीर-भोगों से विरक्ति होने पर ही परम धर्म में अनुराग होता है। धर्म का स्वरूप- 'धर्म' शब्द का अर्थ ऐसा जानना- जो वस्तु का स्वभाव है, वह धर्म है, उत्तमक्षमादि दशलक्षण 'धर्म' है। रत्नत्रय 'धर्म' है, तथा जीवों की दया 'धर्म' है। जिनेन्द्रदेव के द्वारा कहे गये धर्म में अनुराग होना ‘संवेग' है। रत्नत्रयधर्म में कपटरहित अनुराग होना ‘संवेग' है। मुनीश्वरों के तथा श्रावकों के धर्म में अनुराग होना ‘संवेग' है। जीवों की रक्षा करने रूप जीवदया के परिणाम होना, उसे भगवान् ने 'संवेग' कहा तीर्थंकर, चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र आदि होना धर्म ही का फल है। बाधारहित केवली होना, स्वर्गादि में महान ऋद्धिधारी देव होना, इन्द्र होना, अनुत्तर आदि विमानों में अहमिन्द्र होना, वह सब पूर्व जन्म में आराधन किये धर्म का ही फल है। भोगभूमि आदि में उत्पन्न होना, राज्य-संपदा पाना, अखण्ड ऐश्वर्य पाना, अनेक देशों में आज्ञा चलना, प्रचुर धन-संपदा पाना, रूप की अधिकता पाना, बल की अधिकता, चतुरता, महान पंडितपना, सर्वलोक में 0683_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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