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________________ मनोबल को जगा दिया। युद्ध के बाजे बज जायें और वह रुका रह जाये, ऐसा कभी नहीं हुआ था। ___ जीवन में मनोबल ही श्रेष्ठ है। जिसका मनोबल जागृत हो गया, उसको दुनियाँ की कोई भी शक्ति रोक नहीं सकती। वास्तव में शीलव्रत के धारी ही सच्चे वीर हैं। भर्तृहरि ने एक श्लोक में लिखा है मत्तेय-कुम्भदलने भुवि सन्ति शूराः । केचित्प्रचण्ड मृगराज वधेपि दक्षाः ।। किन्तु ब्रवीम वलिनां पुरतः प्रसमः । कंदर्प दर्प दलने विरला मनुष्यः ।। इस संसार में ऐसे शूर हैं, जो मत्त हाथियों के कुंभस्थल को दलन करने में समर्थ हैं। कितने ही शूरवीर ऐसे हैं जो मृगराज अर्थात् सिंह का बध करने में दक्ष हैं, किन्तु मैं भर्तृहरि उन बली व्यक्तियों से कहता हूँ कि कामदेव का दलन करने वाले मनुष्य विरले होते हैं। जिसने कंदर्प के दर्प का दलन कर दिया, उसने अपना संसार मिटा दिया। शीलवंत को इन्द्र भी नमस्कार करते हैं। शीलवान् पुरुष रत्नत्रयरूप धन को लेकर कामादि लुटेरों के भय से रहित निर्वाणपुरी की ओर गमन करते हैं। शील नाम स्वभाव का है। कामी मनुष्य का शील जो आत्मा का स्वभाव है, वह खोटा हो जाता है, इसलिए इसको कुशील कहते हैं। ऐसे कुशील से सदा दूर रहना चाहिये। जिसने अपने शील की रक्षा की, उसने शान्ति, दीक्षा, तप, व्रत, संयम सब पाल लिया। अपने स्वभाव से चलायमान नहीं होना, उसे मुनीश्वर 'शील' कहते हैं। शील गुण सभी गुणों में बड़ा है। शील सहित पुरुष का थोड़ा भी व्रत, तप प्रचुर फल देता है तथा शील बिना बहुत भी व्रत-तप हो वह निष्फल है। अतः यदि अपना यह मनुष्यभव सफल करना चाहते हो तो शील की ही उज्ज्व लता करो। शील सदा दृढ़ नर पालै, सो औरन की आपद टाले। 0669_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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