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________________ वचन? पांडवों के लिये कौरवों ने राज दिया था खांडप्रस्थ का। इसका अर्थ है खण्डहर का स्थान । यह दे दिया था। घृतराष्ट्र के कहने पर कुछ तो देना पड़ेगा। लेकिन पांडव तो कर्मठ जीव थे, अकर्मण्य जीव नहीं थे। भाग्य पर भरोसा नहीं रखते थे, अपने बाहुबल पर भरोसा रखते थे। पांडवा तो जैन थे, क्षत्रियपुत्र थे। वे तो कहते थे कि बाहुबल से हम सबकुछ कर लेंगे, और कर दिखाया उन्होंने, खांडप्रस्थ को परिवर्तित कर दिया और इन्प्रस्थ बना दिया। इन्द्र का अर्थ होता है माया और प्रस्थ यानि स्थान। उस स्थान को मायावी बना दिया और दुर्योधन को भी इन्द्रप्रस्थ महल के उद्घाटन समारोह में बुलाया। नांगल (गृह प्रवेश) करने की परंपरा आज की नहीं, बहुत पुरानी है। मकान बनने के बाद सारे रिश्तेदारों को बुलाकर नांगल करवाया जाता है। जिसमें धार्मिक अनष्ठान किया जाता है। पांडवों ने भी खाण्डप्रस्थ को इन्द्रप्रस्थ बनाकर नांगल किया। उसमें दुर्योधन भी आया। ओ हो! दुर्योधन तो देखते ही दंग रह गया। कहीं पर जाता, सोचता कि जहाँ जल होगा, वह अपना चूड़ीदार पैजामा ऊपर को खींचता है कि गीला न हो जाये, लेकिन वहाँ देखता है कि वहाँ तो जमीन है और जहाँ जमीन देखने में आती है वहाँ पर स्वीमिंग पूल जैसा जलकुण्ड था, अतः धड़ाम से गिर जाता है। यही तो संसार है। संसार में सारा-का-सारा माया का जल भरा है। जिसे हम सत्य मानते हैं, वह असत्य है और जिसे हम असत्य मानते हैं, वह सत्य है। पारमार्थिक सुख ही सत्य है। जिस-जिस में हमें दुःख मिला, उसको हमने सत्य कहा और दूसरे को भी वही मार्ग बताया। जिस गृहस्थी के जाल में मकड़ी का जाल बन रहा है, उसमें क्या 24 घण्टे में एक समय के लिए भी निराकुल परिणाम कर पाए? नहीं। फिर भी हम दूसरों को उसी में फँसाने का उपदेश देते हैं। द्रोपदी के दो शब्दों ने कमाल कर दिया-'अन्धे के पुत्र अन्धे ही होते 10 659_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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