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________________ ऐसी शादी तो हमने न कहीं देखी है और न सुनी है कि आनेवाले बारातियों को सच्चे मोती मुक्त हाथों से बाँटे जाएँ। सबने मनमर्जी के मुताबिक अपनी जेबें भर लीं और बारात विदा हो गई। सबके जाने के बाद सेठ ने अपने अंतरंग मित्रों को बुलाकर कहा कि तुम्हें उन बारातियों के पीछे-पीछे जाना है। रास्ते में इनकी भोजन व्यवस्था का पूरा ध्यान रखना और अपने कानों को भी सतर्क रखना। क्योंकि आते हुए बाराती कुछ नहीं बोलते, परन्तु जाते हुये बाराती बहुत कुछ बोलते हैं। अतः तुम कान खोलकर उनकी बातें सुनना। इस तरह सेठ ने अपने मित्रों को बारातियों की प्रतिक्रिया जानने के लिए भेजा, ताकि पता लगे कि लोग सेठ के बारे में क्या-क्या कहते हैं। सेठ के कहे अनुसार मित्र पूरा ध्यान रख रहे थे। जहाँ भी दो-चार बाराती इकट्ठे होकर बैठ जाते, वहीं वे मित्र भी पहुँच जाते। इतने में बारात का एक प्रमुख व्यक्ति ठहाका मारते हुए कह रहा था-यारो! कुछ भी कहो, सेठ ने शादी तो बहुत बढ़िया की, परन्तु सारे काम बनियाबुद्धि से हुए थे। सेठ ने प्रदर्शन तो इतना किया कि मोती बाँटे जा रहे हैं, किन्तु घड़े का मुँह इतना छोटा रखा कि कोई पूरी मुट्ठी भरकर मोती निकाल ही न सके। मोती बाँटने का तो सिर्फ दिखावा ही किया था। सेठ के मित्र इस बात को सुनकर दंग रह गये। जब मित्र लौटकर सेठ के पास पहुंचे, तो सेठ उनसे बहुत कुछ सुनने को उत्सुक था। मित्रों की बात सुनकर सेठ ने कहा – मित्रो! दुनियाँ के लोग सिर्फ दोष ही निकाल सकते हैं, प्रशंसा नहीं करते। अच्छा होता मैं तुम्हारी बात मान लेता। आज से संकल्प करता हूँ कि यश पाने के लिये कोई भी कार्य नहीं करूँगा। यह संसार असार है, यहाँ मान करना मूढ़ता की बात है। विनय से रहित घमंडी व्यक्ति अन्त में नष्ट हो जाता है। 06570
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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