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________________ मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी, या बिन ज्ञान चरित्रा। सम्यक्ता न लहे सो दर्शन, धारो भव्य पवित्रा ।। "दौल" समझ सुन चेत सयाने, काल वृथा मत खोवै। यह नरभव फिर मिलन कठिन है, जो सम्यक् नहिं होवै।। सम्यग्दर्शन की प्रप्ति न होने से अनन्तानन्त काल से यह जीव संसार में परिभ्रमण करता आ रहा है। अब यदि चतुर्गतिरूप संसार के परिभ्रमण से भयभीत हो, जन्म-मरण से छुटकारा चाहते हो और अविनाशी अपनी सुखमय आत्मा की इच्छा हो, तो अन्य समस्त परद्रव्यों की अभिलाषा छोड़कर सम्यग्दर्शन को उज्ज्वल करो, क्योंकि सम्यग्दर्शन संसार के दुःखरूपी अंधकार को नाश करने के लिये सूर्य के समान है, भव्यजीवों को परम शरण है। अगर दर्शनविशुद्धि भावना नहीं हुई, तो शेष पन्द्रह भावनाएँ नहीं हो सकतीं। एक बार एक राजा किसी कार्यवश विदेश गया। वहाँ का कार्य होने के बाद जब वह राजा अपने देश वापस लौटने लगा तो उसने सोचा कि जब विदेश आये हैं तो यहाँ से अपनी रानियों के लिए कुछ सामान ले जाना चाहिए। राजा ने अपने मंत्री से पूछा कि क्या ले जाना चाहिए, तो मत्री ने कहा कि एक-एक पत्र सभी रानियों को लिख दें कि उन्हें क्या-क्या चाहिये। उसने ऐसा ही किया और सभी रानियों को पत्र लिख दिये। पत्र पढ़कर सभी रानियाँ प्रसन्न हुईं। सबने अपनी-अपनी पसन्द पत्र में लिख दी। राजा ने सब के पत्र पढ़े। सब रानियों ने साड़ी जेवर आदि लाने के लिए लिखा था। छोटी रानी ने अपने पत्र में एक (1) का अंक लिखा था जिसका अर्थ था कि मैं आपको चाहती हूँ। आपको घर से यहाँ आये हुए मर्यादित समय से अधिक समय हो गया है, इसलिए मैं आपको देखना चाहती हूँ। इस प्रकार पत्र का आशय सुनकर राजा बहुत 10 649_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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