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________________ अपने आपकी ओर आने का मौका मिलता है, वह प्रवृत्ति तो है धर्म और जिस प्रवृत्ति में हम आत्मा से और उल्टा दूर भाग जाते हैं, वह सब है अधर्म। पहाड़ों से गिरने, नदी में नहाने, अग्नि में जलने, पेड़ों को पूजने, पेड़ में धागा बाँधना, चीथड़े बाँधना कौन-कौन-सी बातें कहें, ये सब लोकमूढ़तायें हैं। परिणाम होना चाहिये शुद्ध तत्त्व के दर्शन का और उस शुद्ध तत्त्व के आलम्बन के प्रसाद से संसार के समस्त संकटों से छूटने का। अपने आपकी करुणा करो। यह विश्व एक लुटेरी जगह है। यहाँ किसी भी बाह्य तत्त्व दृष्टि देकर शान्ति / सन्तोष नहीं हो सकता । यदि अपने आप पर कृपा करनी हो तो इन मूढ़ताओं को छोड़कर अन्तरंग में साहस बनाना होगा कि मेरा कहीं कुछ नहीं है, मैं अकिंचन हूँ, केवल ज्ञानानन्द स्वरूप हूँ, ऐसी श्रद्धा बनानी होगी, अन्यथा जैसे भटकते आये हैं, वैसे ही भटकते रहेंगे। जैनत्व का बोध जिसे हो जाता है, वह इन सब फालतू के चक्कर में नहीं फँसता । कुदेव, कुशास्त्र व कुगुरु को मानने वाले चाहे अपने रिस्तेदार हों, चाहे कुटुम्ब के लोग हों, चाहे मित्रमंडली के लोग हों, वे सब धर्म के अनायतन हैं। जीव के अनादि संसारभ्रमण के कारण ये छः अनायतन और तीन मूढ़तायें ही हैं। सभी को इनसे सदा दूर रहना चाहिये । 631 2
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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