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________________ सब ठीक हो जायेगा। एक मास्टर साहब थे। वे 19-20 लड़कों को पढ़ाते थे। एक दिन दोपहर में खेलते-खेलते बच्चों को प्यास लगी। सब बच्चों ने विद्यालय में प्यास की तृप्ति की। केवल एक लड़का पास के तालाब में प्यास बुझाने चला गया। संयोगवश उसका पैर फिसल गया और वह डूबने लगा। उसकी आवाज लड़कों तथा मास्टर साहब के कानों में पड़ी। सभी दौड़े आये, किन्तु मास्टर साहब बजाय उस बच्चे को बचाने के उसे भाषण पिलाने लगे। लड़का डूबता चला जा रहा है और वे लेक्चर पिलाने में लगे हैं। एक आदमी वहाँ आता है और मास्टर साहब से उस बालक की जान बचाने को कहता है। "नहीं, मैं तो इसे भाषण ही पिलाऊँगा। यही समय है इसको भाषण पिलाने का।" उस आदमी ने उस बालक की प्राणरक्षा की। क्या हम ऐसे मास्टर को प्रज्ञ कहेंगे? नहीं, कभी नहीं। प्रज्ञ वे हैं, जो रक्षा करते हैं, डिगते हुये चरणों को स्थित करते हैं। सीताजी ने अबला होते हुये भी अपने पति श्रीराम को धर्म में स्थित रहने के लिये कहा था। कृतान्तवक्र जब उन्हें लेकर जंगल पहुँचा और रथ में से उतरने के लिये कहा, तो सीता किंचित्मात्र भी आकुलित नहीं हुईं। उन्होंने अपने आपको तो धर्म में स्थिर किया ही और सेनापति से कहा"तुमने अपना कार्य किया और राजाज्ञा का पालन अनुचर होकर करना भी चाहिए। महाराजा राम देशोन्नति/लोकलाज के कारण कहीं अपने धर्म का परित्याग न कर दें, बस इतना उनसे अवश्य कह देना। दृष्टि और चरण दोनों लड़खड़ाने लगें, उस समय जो सहारा देते हैं, वास्तव में वे ही प्रज्ञ हैं। सीता ने उस असहाय अवस्था में भी राम को सम्बल प्रदान किया था। धर्म में स्थित करने के लिये वे वास्तव में प्रज्ञ थीं। 'पुरुषार्थ सिद्धयुपाय' में आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने लिखा है 571
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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